पांच साल ‘राजपाट’ पूरा करने के लिए उत्तराखंड के सीएम रावत की हर दिन दौड़ती विकास योजनाएं


कोरोना संकटकाल में भी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भागदौड़ किए हुए हैं. इसकी वजह राज्य में विधानसभा चुनाव की आहट का सुनाई देना है. हालांकि अभी उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में डेढ़ साल का समय है, लेकिन सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तैयारियां तेज कर दी है.

पिछले कुछ समय से सीएम रावत उत्तराखंड में धड़ाधड़ विकास योजनाओं को लागू किए जा रहे हैं. त्रिवेंद्र सिंह रावत विपक्षी नेताओं को किसी प्रकार का मुद्दा नहीं देना चाहते हैं. मुख्यमंत्री की हर दिन नई-नई विकास योजनाओं की घोषणा से कांग्रेस की चिंता बढ़ गई है.

यहां हम आपको बता दें कि आने वाले 18 सितंबर को त्रिवेंद्र सिंह को सीएम पद संभाले साढ़े तीन साल पूरे हो जाएंगे. आइए आपको कुछ पीछे लिए चलते हैं. ‌इस राज्य का गठन नौ नवंबर वर्ष 2000 को हुआ था. तब भाजपा आलाकमान ने नित्यानंद स्वामी को पहली अंतरिम सरकार का मुख्यमंत्री पद सौंपा.

स्वामी को पहले ही दिन से पार्टी के अंतर्विरोध से जुझना पड़ा था. बाद में केंद्रीय आलाकमान ने स्वामी को एक साल पूरा करने से पहले ही हटा दिया था. उसके बाद राज्य के मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी बनाए गए लेकिन 4 महीने बाद हुए राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता पर काबिज हो गई.

इस तरह कोश्यारी सिर्फ 4 महीने ही मुख्यमंत्री रह सके. ऐसे ही भुवन चंद खंडूड़ी और रमेश पोखरियाल निशंक भी अपना मुख्यमंत्री पद पर दो साल से ही रह सके. राज्य में 20 वर्ष की सत्ता भाजपा और कांग्रेस के कब्जे में रही. उत्तराखंड में कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी ही ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने अपना कार्यकाल 5 वर्ष पूरा किया था.

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कांग्रेस के हरीश रावत उत्तराखंड के दो बार मुख्यमंत्री बने लेकिन दोनों बार ही वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. कांग्रेस के विजय बहुगुणा भी मुख्यमंत्री पद पर लगभग 2 साल ही रह सके. अब त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास चुनौती होगी कि वह अपना राजपाट 5 साल पूरा करने और नारायण दत्त तिवारी की बराबरी आ सकें, लेकिन अब उनके बचे डेढ़ साल कम चुनौती भरे नहीं होंगे.

मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर रावत के सामने सामंजस्य बैठाने की होगी चुनौती
उत्तराखंड भले ही छोटा राज्य है लेकिन राजनीति गतिविधियों के मामले में बेहद सक्रिय रहा है. सूबे के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पिछले कुछ महीनों से राज्य में विकास योजनाओं को लेकर बेहद सक्रिय नजर आ रहे हैं. लेकिन अपने मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर वे हमेशा पीछे हटते रहे हैं. काफी समय से त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं लेकिन हर बार यह आगे के लिए टाल दी जाती है. यहां हम आपको बता दें कि त्रिवेंद्र सरकार में दो मंत्री पद तो सरकार के गठन से ही खाली पड़े हैं, वहीं पिछले जून माह में भाजपा के कद्दावर मंत्री प्रकाश पंत के निधन के बाद से एक मंत्री पद और खाली हो हो गया है.

तीन मंत्री पदों को भरने के लिए हालांकि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अभी फिलहाल कुछ नहीं कह रहे हैं. लेकिन उन्होंने पिछले दिनों उन्होंने जो संकेत दिए हैं कि अपना मंत्रिमंडल विस्तार नवरात्र में कर सकते हैं. बताया जा रहा है कि तीन मंत्री पद के लिए कई भाजपा के विधायक दावेदार बताए जा रहे हैं. मसूरी के तेजतर्रार विधायक गणेश जोशी भी मंत्री बनने के लिए भाजपा के लिए आलाकमान से जुगाड़ लगाए हुए हैं.‌ जोशी पिछले तीन बार से मसूरी विधानसभा से विधायक हैं.‌

ऐसे ही भाजपा विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने भी मंत्री बनने के संकेत दिए हैं. उत्तराखंड में मंत्रिमंडल विस्तार के लिए अक्टूबर तक इंतजार करना होगा. राज्य में मंत्रिमंडल विस्तार की देरी पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत का कहना है कि यह मामला मुख्यमंत्री के कार्यक्षेत्र का है और इसलिए यह उन पर छोड़ दिया गया है. वह जब ठीक समझेंगे, इसे करेंगे। यहां हम आपको बता दें कि 2 सितंबर से 17 सितंबर तक श्राद्ध पक्ष हैं. फिर 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक अधिमास (मलमास) है. आमतौर पर श्राद्ध और अधिमास में शुभ काम अच्छे नहीं माने जाते हैं.


कुछ माह पहले त्रिवेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने की लगी थीं अटकलें
जून महीने में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को बदलने की अटकलें उत्तराखंड में तेज हो गई थी. अनुभव और वरिष्ठता के आधार पर भाजपा में ज्यादातर नेता त्रिवेंद्र सिंह रावत से वरिष्ठ हैं। सतपाल महाराज हों या विजय बहुगुणा, मदन कौशिक या रमेश पोखरियाल निशंक सब कद्दावर हैं. उत्तराखंड से भाजपा के राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी अगर बीमार न पड़े होते तो वह त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भारी पड़ जाते हैं. कुछ समय पहले भाजपा के ही अपनों ने दिल्ली दरबार और संघ के गलियारों में माहौल बनाया था कि त्रिवेंद्र सिंह रावत से सूबे के लोग खुश नहीं हैं। उन्हें आलाकमान ने हटाया नहीं तो अगले चुनाव में कांग्रेस की सत्ता पर काबिज हो सकती है.

मुख्यमंत्री विरोधी खेमा तो दावा कर रहा था कि कोरोना का संक्रमण नहीं हुआ होता तो अब तक रावत की छुट्टी हो चुकी होती। हरिद्वार के विधायक और रावत सरकार में मंत्री मदन कौशिक दौड़ में शामिल थे. कौशिक लगातार चौथी बार विधायक हैं। जनाधार भी कम नहीं। संघ परिवार से भी उनकी नजदीकी है. यही वजह है कि मुख्यमंत्री रावत पिछले कुछ दिनों से राज्य विकास योजनाओं को लेकर तेजी दिखा रहे हैं.

लेकिन उनकी असल परीक्षा आने वाले समय में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर रहेगी. सबसे बड़ा सवाल यह है कि तीन मंत्री पद के लिए कई भाजपा विधायकों कि मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए दौड़ लगी हुई है. अब देखना होगा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने मंत्रिमंडल में किस को जगह देते हैं या यह फैसला केंद्रीय भाजपा आलाकमान पर छोड़ते हैं.


शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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