उत्तराखंड: चुनाव हारकर भी ‘बाजीगर’ साबित हुए धामी, 23 मार्च को लेंगे शपथ-टूटेगा ये रिकॉर्ड

देहरादून| उत्तराखंड में लगातार दूसरी बार सत्तासीन होने का इतिहास रचने वाली भाजपा के अगुवा पुष्कर सिंह धामी अपनी सीट हारने के बावजूद एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल कर बाजीगर साबित हुए हैं.

46 साल के धामी के बुधवार 23 मार्च को दूसरी बार शपथ लेने के साथ ही 22 साल पहले अस्तित्व में आए उत्तराखंड में एक और मिथक यह भी टूटेगा कि किसी भी मुख्यमंत्री ने लगातार दो बार अपनी पारी नहीं खेली है. धामी को विधायक दल का नेता चुने जाने का ऐलान केंद्रीय पार्टी पर्यवेक्षक रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और मीनाक्षी लेखी ने किया था.

वैसे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विधानसभा चुनाव से पहले पुष्‍कर सिंह धामी की तुलना क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी से करते हुए उन्हें एक अच्छा ‘मैच फिनिशर’ बताया था, जो जरूरत पड़ने पर भाजपा के लिए ताबड़तोड रन बना सकते हैं. क्रिकेट शब्दावली का प्रयोग करते हुए सिंह ने कथित तौर पर कहा था कि धामी मुख्यमंत्री के रूप में बिना थके अनवरत काम कर रहे हैं और उन्हें टेस्ट मैच खेलना चाहिए. संभवत: इसीलिए भाजपा हाईकमान ने खटीमा सीट पर उनकी हार के बावजूद लंबे समय के लिए धामी पर ही भरोसा जताया.

बता दें कि पिछले साल जुलाई में धामी को विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही प्रदेश की बागडोर सौंपी गयी थी. वहीं, वह पार्टी नेतृत्व के भरोसे पर वह खरे उतरे. हाल में संपन्न विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 70 में से 47 सीटें जीतकर दो तिहाई से अधिक बहुमत के साथ लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल की है.

खटीमा में नहीं लगा सके जीत की हैट्रिक
हालांकि लगातार तीसरी बार खटीमा से विधायक बनने का प्रयास कर रहे धामी कांग्रेस के अपने प्रतिद्वंदी भुवन चंद्र कापड़ी से 6500 वोटों के अंतर से हार गए. पिथौरागढ के सीमांत क्षेत्र कनालीछीना में एक पूर्व सैनिक के घर में पैदा हुए धामी की कर्मभूमि खटीमा ही रही है और यहां से उनकी हार उनके लिए एक बडा झटका माना गया.

एक झटके में विपक्ष से छीन लिए मुद्दे
धामी ने जब पिछले साल जुलाई में कार्यभार संभाला था तब वह प्रदेश के इतिहास में सबसे युवा मुख्यमंत्री बने थे और उनके सामने कोरोना महामारी और आपदाओं के साथ ही नजदीक आते विधानसभा चुनाव जैसी कई चुनौतियां थीं और खुद को साबित करने के लिए मात्र छह महीने थे.

कोविड के चलते पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था, तीर्थ पुरोहितों का चारधाम बोर्ड को लेकर आंदोलन और कोविड फर्जी जांच घोटाला जैसी चुनौतियां भी उनके सामने थीं. उन्होंने कई आर्थिक पैकेजों की घोषणा और चारधाम बोर्ड भंग कर जीत हासिल की और ऐन विधानसभा चुनाव से पहले विपक्ष के हाथ से मुददे छीन लिए.

पुष्‍कर सिंह धामी महाराष्ट्र के राज्यपाल और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के करीबी माने जाते हैं और उनके मुख्यमंत्री रहने के दौरान वह उनके विशेष कार्याधिकारी थे. माना जाता है कि छात्र राजनीति से जुड़े रहे धामी को राजनीति के क्षेत्र में उंगली पकड़कर कोश्यारी ही लाए थे. सूत्रों के मुताबिक, इस बाद भी जब भाजपा आलाकमान ने कोश्यारी की राय मांगी थी, जिसका फायदा धामी को मिला है.

साभार-न्यूज़ 18



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