आने वाले समय में बिहार की राजनीति में महाराष्ट्र की तरह बड़ी राजनीतिक उलटफेर होने की अटकलें लगाई जा रही हैं. एक तरफ जहां 18 जुलाई को होने वाली एनडीए की मीटिंग में चिराग पासवान और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को बुलाया गया है तो वहीं दूसरी तरफ चिराग पासवान से लेकर सुशील मोदी तक सबने दावा कर दिया है कि आने वाले समय में बिहार में जेडीयू टूट सकती है.
हाल ही में हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान दावा किया था कि, बिहार में सरकार किसी भी वक्त टूट सकती है. उन्होंने कहा था कि जेडीयू के लोग भी नीतीश कुमार से ऊब चुके हैं और दूसरा ऑप्शन तलाश रहे हैं. वह एनडीए का समर्थन भी कर सकते हैं. उपेंद्र कुशवाहा ने तो जेडीयू में रहते हुए ही यह बात कहनी शुरू की थी और अब भी इस बात को दोहराते रहते हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इन सभी नेताओं का दावा सही हो सकता है? महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी की तरह क्या जेडीयू में टूट संभव है?
महाराष्ट्र में एनसीपी की टूट के बाद बिहार के बीजेपी अध्यक्ष सुशील मोदी का बयान आया था. उन्होंने कहा था महाराष्ट्र में एनसीपी के साथ जो हुआ है वह आने वाले समय में बिहार में भी हो सकता है. यही कारण है कि नीतीश कुमार ने पिछले 13 सालों में अपने पार्टी के विधायकों से कभी एक-एक कर बातचीत नहीं की है. लेकिन अब वह अपने विधायकों के साथ मिल रहे हैं जिससे साफ पता चलता है कि वह डरे हुए हैं कि कहीं महाराष्ट्र की तरह उनकी पार्टी में भी फूट न पड़ जाए.
बीजेपी का कहना है कि जेडीयू के विधायक 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले हो रहे विपक्षी एकजुटता में राहुल गांधी को पीएम पद का दावेदार नहीं बनाना चाहते है.
इसके अलावा हाल ही में नीतीश कुमार का एक बयान आया था कि उनके बाद राज्य की कमान तेजस्वी यादव को सौंपी जाएगी यानी नीतीश के बाद तेजस्वी यादव को बिहार का सीएम बनाया जाएगा. नीतीश के इस बयान से जेडीयू के अधिकतर विधायक नाखुश हैं क्योंकि अगर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनते हैं तो जेडीयू के जीतने के संभावना कम हो जाएगी.
वर्तमान में जेडीयू की जो स्थिति है उसे देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि शिवसेना और एनसीपी की तरह जेडीयू में टूट फिलहाल संभव है. दरअसल महाराष्ट्र के चुनावी आंकड़े और बिहार के चुनावी आंकड़ो में काफी अंतर है. यहां की नेता और राजनीति भी महाराष्ट्र की राजनीति से काफी अलग है.
आंकड़ों से समझे तो बिहार में गठबंधन में जो सरकार है उसमें आरजेडी के पास फिलहाल सबसे ज्यादा 79 विधायक हैं और जेडीयू के पास 45 विधायक हैं. तीसरे स्थान पर कांग्रस है जिसके पास राज्य में 19 विधायक हैं. फिलहाल इन तीनों पार्टियों ने गठबंधन के तहत सरकार बनाया हुआ है.
ऐसे में अगर बीजेपी शिवसेना की तरह जेडीयू को तोड़ने की कोशिश करती है तो जेडीयू के कम से कम 30 विधायकों को एक तरफ होना होगा जो कि बिहार में बेहद मुश्किल है.
बिहार में अगर भारतीय जनता पार्टी तख्तापलट की कोशिश करती है तो उसे 122 सीटों का आंकड़ा पार करना होगा और फिलहाल पार्टी के पास सिर्फ 74 विधायक हैं. जिसका मतलब है कि बिहार में तख्तापलट करने के लिए बीजेपी को 48 और विधायकों की जरूरत है.
वहीं दूसरी तरफ सत्तारूढ़ गठबंधन के पास फिलहाल करीब 160 विधायक हैं. जिसमें जेडीयू, राजद और कांग्रेस के अलावा तीन वामपंथी दल शामिल हैं. हालांकि इसी साल जून महीने में जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाले हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) ने नीतीश सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था. हम पिछले चार विधायकों के साथ सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल हुई थी. हालांकि, अब वह एनडीए के साथ है.
क्यों नहीं टूट सकती जेडीयू, तीन कारण
1. नीतीश के इर्द-गिर्द शामिल नेताओं विजय चौधरी, अशोक चौधरी, संजय झा और ललन सिंह का अपना जनाधार नहीं.
2. विधायकों की संख्या कम है और जितने हैं उनमें से अधिकांश नीतीश के समीकरण के सहारे ही जीतते हैं.
3. नीतीश के पास साइलेंट वोटर्स हैं.
हम के नेता और पूर्व मंत्री संतोष सुमन की मानें तो पिछली साल सरकार बनाने और जेडीयू के महागठबंधन में शामिल होने से पहले ही यह किया गया था कि नीतीश कुमार जितनी जल्दी हो सके विपक्षी एकता की बागडोर लेकर राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखेंगे. शुरुआत में सीएम नीतीश को यह प्रस्ताव अच्छा लगा और उन्होंने एनडीए का साथ छोड़ते हुए आरजेडी का दामन थाम लिया. आरजेडी ने नीतीश कुमार को वादे के अनुसार मुख्यमंत्री पद दे दिया लेकिन नीतीश को जब अपना किया गया वादा पूरा करने को कहा गया तो वह स्पष्ट जवाब देने से बचने लगे हैं.
जिसे देखते हुए आरजेडी ने नीतीश को अल्टीमेटम दिया है कि वह जितनी जल्दी हो सके तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाएं और खुद को विपक्षी एकता के लिए आजाद करें. संतोष सुमन के मुताबिक आरजेडी की तरफ से ये भी कहा गया है कि अगर नीतीश ऐसा नहीं करते हैं तो वह उनके ही विधायकों को तोड़ कर तेजस्वी की ताजपोशी करा दी जाएगी.
जेडीयू में फूट पड़ने के इतने सारे कयास लगाए जाने लगे कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को खुद सामने आना पड़ा. उन्होंने पार्टी में किसी भी तरह की फूट को इनकार करते हुए कहा कि जेडीयू में टूट की आशंका वही लोग जता रहे हैं, जिनकी आदत पार्टियों को तोड़ने की रही है.
वहीं नीतीश कुमार जेडीयू विधानमंडल दल की बैठक को संबोधित करते इन सभी अटकलों और अफवाहों पर फुलस्टॉप लगाते हुए कहा कि बीजेपी विपक्षी दलों की एकजुटता के बाद घबरा गई है. बीजेपी काम ही है झूठा प्रचार करना.
2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में अब 8 से 9 महीने बचे हैं. ऐसे में नीतीश कुमार अपनी पार्टी के नेताओं को एकजुट रखने की कोशिश कर रहे हैं और अपने पार्टी के नेताओं और विधायकों के मन की बात को समझना चाह रहे हैं. इस बार होने वाले लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार के लिए चुनौतियां इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि उन्हें विपक्षी बीजेपी के साथ-साथ अपने साथी आरजेडी से भी कई मामलों पर चुनौती मिलती रही है.
क्या एनसीपी-शिवसेना की तरह जेडीयू में टूट संभव है! दावे और आकड़ों को समझिए
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