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गुरु पूर्णिमा उत्तरांचल टुडे विशेष: गुरु का ज्ञान और मार्गदर्शक शिष्यों के लिए जीवन भर आगे बढ़ने के लिए देते हैं प्रेरणा

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एक ऐसा रिश्ता जो जीवन के आखिरी समय तक भी नहीं मिटता है. कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी आगे बढ़ने की राह दिखाता है. आज हम बात करेंगे गुरु और शिष्य के पवित्र रिश्तों की. ‘गुरु बिन ज्ञान नहीं, ज्ञान बिन आत्मा नहीं, ध्यान-ज्ञान-धैर्य और कर्म सब गुरु की ही देन हैं.

इन चंद लाइनों के बिना गुरु पूर्णिमा की बात अधूरी है. वैसे तो पूर्णिमा हर महीने आती है लेकिन इसका महत्व तब और बढ़ जाता है जब इसके आगे ‘गुरु’ लग जाता है. तब यह हो जाती है ‘गुरु पूर्णिमा’. आज गुरु पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त शुरू हो गया है जो कल भी रहेगा. इस बार गुरु पूर्णिमा उत्सव दो दिन का है. बता दें कि हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक साल आषाढ़ महीने की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा के तौर पर मनाया जाता है.

इस साल पंचांग के अनुसार, गुरु पूर्णिमा 12 जुलाई को रात्रि में 2 बजकर 35 मिनट से शुरू हो रही है. इसलिए उदया तिथि में 13 जुलाई को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा. गुरु पूर्णिमा का स्नान पूर्णिमा तिथि के प्रारंभ होते ही शुरू हो जाएगा. गुरु पूर्णिमा के स्नान – दान का उत्तम शुभ मुहूर्त सूर्योदय के पहले तक माना जाता है. वैसे पूर्णिमा तिथि 13 जुलाई को रात्रि के 12:06 बजे तक है. इसके उपरांत सावन का प्रवेश हो जाएगा और उदया तिथि में 14 जुलाई से सावन के महीने का प्रारंभ होगा.

गुरु पूर्णिमा का स्नान-दान: 13 जुलाई को सुबह करीब 4 बजे प्रारंभ
इन्द्र योग: 13 जुलाई को दोपहर 12:45 बजे तक
चन्द्रोदय समय: 13 जुलाई, शाम 07:20 बजे
भद्राकाल: 13 जुलाई को सुबह 05 बजकर 32 मिनट से दोपहर 02 बजकर 04 मिनट तक
राहुकाल: 13 जुलाई को दोपहर 12 बजकर 27 मिनट से दोपहर 02 बजकर 10 मिनट तक


गुरु पूर्णिमा एक ऐसा त्योहार है जिसमें गुरु और शिष्य के पवित्र रिश्तों की हजारों कहानियां हैं. गुरु पूर्णिमा के दिन दान-पुण्य के साथ गुरुओं का आशीर्वाद लेने की पुरानी परंपरा रही है. बिना गुरु के जीवन अधूरा माना जाता है. शिष्यों के लिए गुरु का आशीर्वाद जीवन में सरल और सुगम बन जाता है. सही मायने में यह दिन गुरु को समर्पित है. बिना गुरु के कोई ज्ञान प्राप्‍त नहीं कर सकता. जब किसी को सच्‍चा गुरु मिल जाता हैं, तो उसके जीवन के सारे अंधकार मिट जाते हैं. यह दिन इसलिए काफी अहम है कि इस दिन आपने जिससे भी कुछ ज्ञान हासिल किया हो उनके प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है.

आपको बता दें कि इसी दिन महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास का जन्मदिवस भी मनाया जाता है. वेदव्यास ने सभी 18 पुराणों की रचना की थी. यही कारण है कि कुछ स्‍थानों पर गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी. इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है. उन्हें आदिगुरु कहा जाता है.

गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी. ‘जिस प्रकार आषाढ़ मास के समय आकाश बादलों से घिर जाता है तो उस अंधकार को दूर करने के लिए सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार जीवन के अंधकार को दूर करने के लिए किसी गुरु का होना अत्यंत आवश्यक होता है’. ‘गु’ शब्द का वास्तविक अर्थ है अंधकार और ‘रु’ का मतलब है निरोधक.

अर्थात जो अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाता है उसे गुरु कहते हैं. गुरु शिष्यों को हर संकट से बचाने के लिए प्रेरणा देते रहते हैं, इसलिए हमारे जीवन में गुरु का अत्यधिक महत्व है.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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