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राजनीति का वह चेहरा, जो ब्लॉक प्रमुख से लेकर सत्ता के शीर्ष तक पहुंचा, इस बार है ‘हरदा’ का लिटमस टेस्ट

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हरीश रावत

उत्तराखंड की राजनीति हो या देश की, हरीश रावत एक ऐसा चेहरा औऱ नाम है जिससे हर कोई वाकिफ होगा. कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शामिल पार्टी महासचिव हरीश रावत पार्टी ही नहीं बल्कि राज्य और केंद्र तक में कई अहम जिम्मेदारियों का निर्वहन कर चुके हैं. पिछले साल ही कांग्रेस के पंजाब संकट को हल करने में एक प्रभारी के तौर पर उनकी भूमिका अहम रही थी. रावत कांग्रेस के उन नेताओं में शामिल हैं जिन्हें गांधी परिवार का विश्वासपात्र माना जाता है.

अल्मोड़ा के एक छोटे गांव में हुई थी पैदाइश
हरीश रावत का जन्म 27 अप्रैल 1948 को अल्मोड़ा जिले के रानीखेत में आने वाले मोहनारी गांव में हुआ था. स्कूली शिक्षा अल्मोड़ा से पूरा करने के बाद वह उन्होंने स्नातक तथा परास्तानक की पढ़ाई के लिए लखनऊ का रूख किया और लखनऊ यूनिवर्सिटी से बीएलएलबी किया. छात्र जीवन से ही राजनीति में रूचि रखने वाले हरीश रावत व्यापर संघ के नेता भी रहे. कृषि से जुड़े होने के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी उन्होंने शुरू सो बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी निभाई.

ऐसे हुई राजनीति की शुरूआत
राजनीति में ‘हरदा’ के नाम से मशहूर हरीश रावत की राजनीति ब्लॉक स्तर से उस समय शुरू हुई जब उन्होंने ब्लॉक प्रमुख का चुनाव जीता. इसके बाद वह जिलाध्यक्ष बने और यहीं से युवक कांग्रेस के साथ जुड़कर उन्होंने कांग्रेस के साथ अपनी यात्रा शुरू की. हरीश रावत के जीवन में उस समय अहम पड़ाव आया जब 1980 में सातवीं लोकसभा में अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ संसदीय सीट से उन्होंने जनसंघ (भाजपा) के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी को शिकस्त दी. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 1984 के चुनाव में भी मुरली मनोहर जोशी तथा 1989 के लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड क्रांति दल के काशी सिंह ऐरी को हराकर संसद पहुंचे. इस दौरान वह कई संसदीय समितियों के सदस्य भी रहे. हालांकि इसके बाद हुए 1991 में उन्हें भाजपा के जीवन शर्मा और 1991, 1996, 1998 तथा 1999 में उन्हें भाजपा के बची सिंह रावत के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा.

हरिद्वार से भी रहे सांसद
उत्तराखंड राज्य बना 2001 में वह उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने और उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने 2002 का विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की. लेकिन जब मुख्यमंत्री की बात आई तो एनडी तिवारी के हाथ बाजी लगी. इससे रावत समर्थकों में काफी रोष भी देखने को मिला था. 2002 में कांग्रेस ने हरीश रावत को राज्यसभा भेज दिया और अपने 6 साल के कार्यकाल के दौरान वह संसद की कई अहम कमेटियों के सदस्य रहे. वर्ष 2009 में हरीश रावत ने पहाड़ी क्षेत्र छोड़कर मैदानी इलाके यानि हरिद्वार से लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमाई और शानदार जीत हासिल करते हुए संसद पहुंचे.

मुख्यमंत्री बने फिर लगा राष्ट्रपति शासन
इसके बाद वह केंद्र में संसदीय कार्य, श्रम और रोजगार तथा कृषि औऱ खाद्य उद्योग राज्य मंत्री रहे. इसके बाद उन्हें 2012 में पदोन्नत कर कैबिनेट का दर्जा मिला और जल संसाधन मंत्री बने. 2 फरवरी को विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद हरीश रावत को कांग्रेस ने उत्तराखंड का नया मुख्यमंत्री बनाया और उपचुनाव में धारचूला सीट से जीत दर्ज की. 2016 में राज्य में ऐसी स्थिति आ गई जब कांग्रेस के कुछ विधायकों ने बगावत कर दी और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. मामला कोर्ट में गया तो हरीश रावत फिर से मुख्यमंत्री बने.

मुख्यमंत्री रहते हुए हारे दो सीटों से चुनाव
2017 के विधानसभा चुनाव को कांग्रेस ने हरीश रावत के नेतृत्व में लड़ा और बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा. खुद हरीश रावत किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण से चुनाव लड़े औऱ दोनों सीटों से हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद 2019 में उन्होंने फिर से अपना लोकसभा क्षेत्र बदला और नैनीताल-उधमसिंह नगर सीट से चुनावी मैदान में उतरे. इस बार उन्हें भाजपा नेता और केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट के हाथों करारी शिकस्त मिली. लेकिन हरीश रावत का कद इतना बड़ा है कि उन्हें कांग्रेस ने संगठन के साथ-साथ राज्यों की जिम्मेदारी भी दी और पंजाब का प्रभारी बनाया.

ऐसा है परिवार
परिवार की बात करें तो हरीश रावत की तीन बच्चे हैं आनंद रावत और बेटी अनुपमा रावत राजनीति में सक्रिय हैं. अनुपमा रावत इस बाद विधानसभा चुनाव भी लड रही हैं. वहीं दूसरी बेटी आरती रावत राजनीति से दूर हैं. इस बार उत्तराखंड चुनाव अनौपचारिक रूप से एक बार फिर कांग्रेस द्वारा हरीश रावत के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है औऱ हरीश रावत खुद लालकुआं सीट से चुनाव मैदान में है. अब देखना दिलचस्प होगा कि हरीश रावत कांग्रेस को राज्य की सत्ता दिला पाते हैं या नहीं.

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