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विरोध प्रदर्शनों के लिए शाहीन बाग जैसे सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा स्वीकार्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली| शाहीन बाग जैसे धरनों को ध्यान में रखते हुए शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में बुधवार को कहा कि किसी निर्धारित जगह पर धरना-प्रदर्शन किया जा सकता है.

कोर्ट ने कहा कि लोगों को असहमति रखने और प्रदर्शन करने का अधिकार है लेकिन इस तरह के धरना-प्रदर्शन से किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए.

न्यायमूर्ति एस के कौल की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चितकाल तक कब्जा नहीं किया जा सकता, जैसा कि शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन के दौरान हुआ.

इस मामले की पिछली सुनवाई गत 21 सितंबर को हुई थी
पिछली सुनवाई में जस्टिस एसके कौल, जस्टिस अनिरूद्ध बोस एवं जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था उस समय पीठ ने कहा, ‘हमें सड़क को बाधिक करने और प्रदर्शन के अधिकार के बीच एक संतुलन लाना होगा.

एक संसदीय लोकतंत्र में धरना एवं प्रदर्शन संसद एवं सड़क पर हो सकते हैं लेकिन सड़क पर यह शांतिपूर्ण होना चाहिए.’

यहां का विरोध प्रदर्शन देश भर में सीएए की खिलाफत का एक प्रतीक बना. इसी की तर्ज पर देश भर में अलग-अलग जगहों पर धरने आयोजित किए गए.

शाहीन बाग में धरने का नेतृत्व मुस्लिम समाज की महिलाओं ने किया. धरने में शामिल लोग सरकार से सीएए को वापस लेने की मांग कर रहे थे.

सीएए को लेकर थी ये आशंका
मुस्लिम समाज को आशंका है कि सीएए कानूनों के बाद सरकार देश में एनआरसी की प्रक्रिया शुरू कर सकती है और उनसे अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कहा जा सकता है.

हालांकि, सरकार ने बार-बार कहा है कि सीएए कानून नागरिकता छीनने के लिए बल्कि नागरिकता देने के लिए लाया गया है. शाहीन बाग का धरना खत्म कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी भी लगाई गई थी.

अर्जी में कहा गया था कि सड़क बाधित होने से लोगों को नोएडा से दिल्ली आने-जाने में असुविधा का सामना करना पड़ता है.

इस मामले का हल निकालने के लिए कोर्ट ने एक समिति बनाई थी जिसने प्रदर्शनकारियों से बातचीत की. कोरोना संकट की वजह से बाद में लोग धरने से खुद हट गए.

शाहीन बाग को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अहम बिंदु-
विरोध प्रदर्शनों के लिए शाहीन बाग जैसे सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा करना स्वीकार्य नहीं है.
शाहीन बाग इलाके से लोगों को हटाने के लिए दिल्ली पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए थी.
प्राधिकारियों को खुद कार्रवाई करनी होगी और वे अदालतों के पीछे छिप नहीं सकते.
सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चितकाल तक कब्जा नहीं किया जा सकता, जैसा कि शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन के दौरान हुआ.
लोकतंत्र और असहमति साथ-साथ चलते हैं.




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