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काठमांडू: एक बार फिर ओली के हाथों में आई नेपाल की कमान, जानें वजह

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नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली

काठमांडू|… के पी शर्मा ओली के हाथों में एक बार नेपाल की कमान आ गई है. विपक्षी दल नई सरकार बनाने के लिए सदन में बहुमत जुटाने में नाकाम रहे. सोमवार को विश्वास मत खोने के बाद वो सत्ता से बेदखल हो गए और राष्ट्रपति ने सरकार गठन की समयसीमा गुरुवार तय की थी. हालांकि विपक्षी दलों में मतभेद की वजह से कोई दूसरा चेहरा उभर कर सामने नहीं आया और एक बार फिर पीएम पद की कुर्सी के पी ओली के हाथ आ गई.

सोमवार को हुए विश्वास प्रस्ताव के दौरान कुल 232 सदस्यों ने मतदान किया था जिनमें से 15 तटस्थ रहे. ओली को 275 सदस्यों वाली प्रतिनिधि सभा में विश्वासमत हासिल करने के लिए 136 मतों की जरूरत थी. लेकिन जरूरी मत वो नहीं जुटा पाए. महंत ठाकुर के नेतृत्व वाले धड़े का प्रतिनिधि सभा में करीब 16 मत थे. नेपाली कांग्रेस के पास 61 मत थे.

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी मध्य) जिनके पास 49 मत थे उनका समर्थन हासिल था. नेपाली कांग्रेस-माओवादी मध्य के गठबंधन को उपेन्द्र यादव नीत जनता समाजवादी पार्टी के करीब 15 सांसदों का भी समर्थन हासिल था. इन तीनों दलों के पास कुल 125 मत ही रहे जो 271 सदस्यीय सदन में बहुमत के आंकड़े 136 से 11 मत कम था

शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व वाली नेपाली कांग्रेस ने मंगलवार को प्रधानमंत्री पद के लिए दावा पेश करने का फैसला किया था. लेकिन गठबंधन सरकार बनाने की उसकी कोशिशों को तब झटका लगा जब महंत ठाकुर की अगुवाई वाली जनता समाजवादी पार्टी-नेपाल (जेएसपी-एन) के एक खेमे ने स्पष्ट कर दिया कि वो सरकार गठन की कोशिशों में शामिल नहीं होंगे.

सीपीएन-यूएमएल के माधव कुमार नेपाल-झालानाथ खनल धड़े से संबंध रखने वाले सांसद भीम बहादुर रावल ने गतिरोध खत्म करने के लिये मंगलवार को दोनों नेताओं के करीबी सांसदों से नयी सरकार का गठन करने के लिये संसद सदस्यता से इस्तीफा देने का आग्रह किया. रावल ने बुधवार को ट्वीट किया कि ओली नीत सरकार को गिराने के लिये उन्हें संसद सदस्यता से इस्तीफा देना चाहिये.

उन्होंने लिखा, ”असाधारण समस्याओं के समाधान के लिये असाधारण कदम उठाए जाने की जरूरत होती है. प्रधानमंत्री ओली को राष्ट्रीय हितों के खिलाफ अतिरिक्त कदम उठाने से रोकने के लिये उनकी सरकार गिराना जरूरी है. इसके लिये हमें संसद की सदस्यता से इस्तीफा देना चाहिये. राजनीतिक नैतिकता और कानूनी सिद्धांतों के लिहाज से ऐसा करना उचित है.

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