Home उत्‍तराखंड संस्कृति और परम्परा के लिए ही नहीं, बल्कि शौर्य व अदम्य साहस...

संस्कृति और परम्परा के लिए ही नहीं, बल्कि शौर्य व अदम्य साहस के लिए भी जाना जाता है पौड़ी गढ़वाल

0
पौड़ी गढ़वाल


पौड़ी गढ़वाल| पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड का सुन्दर और प्रकृति की गोद में बसा एक जिला है.

इस जिले का मुख्यालय पौड़ी है. खास बात यह है कि पौड़ी समुन्द्र तल से 1750 मीटर की ऊंचाई पर स्थित.

इसे हिल स्टेशन के रूप में भी जाना जाता है. यहां का वातावरण हमेशा सुहाना और मनोरम रहता है.

इसके चलते पूरे देश से सैलानी यहां पर घुमने आते हैं. पौड़ी गढ़वाल जिले में मुख्य दो नदियां बहती हैं, जिनके नाम अलकनंदा और नायर हैं.

वहीं, अगर भाषा की बात करें तो पौड़ी गढ़वाल के लोग “गढ़वाली” बोलते हैं.

साथ ही इस जिले के लोग भारतीय सेना में भी काफी संख्या में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. यही वजह है कि भारतीय फौज में गढ़वाल नाम से एक रेजमेंट भी बना हुआ है.

पौड़ी गढ़वाल पहाड़ियों बीच बसा हुआ है. इसकी बसावट 5,440 वर्ग किलोमीटर के भौगोलिक दायरे में है. यह जिला एक गोले के रूप में बसा है.

इस जिले के उत्तर में चमोली, रुद्रप्रयाग और टिहरी गढ़वाल है. वहीं, दक्षिण मे उधमसिंह नगर स्थित है. इसी तरह पूर्व में अल्मोड़ा व नैनीताल है.

जबकि पश्चिम में देहरादून और हरिद्वार स्थित है. बताते चलें कि हिमालय कि पर्वत श्रृंखलाएं इसकी सुन्दरता में चार चांद लगते हैं.

संस्कृति: ऐसे तो उत्तराखंड अपनी संस्कृति को लेकर पूरे देश में प्रसिद्ध है.

लेकिन पौड़ी गढ़वाल की बात ही कुछ अलग है. यहां पर बोलचाल की भाषा में लोग ज्यादातर गढ़वाली का उपयोग करते हैं.

लेकिन स्कूलों और सरकारी कार्यालयों में हिन्दी में काम होता है.

साथ ही यहां के लोग अंग्रेजी भी अच्छी तरह से बोल लेते हैं. यहां के लोकगीत, संगीत और नृत्य की झलक पर्व-त्योहारों में देखने को मिल जाती है.

यहां की महिलाएं जब खेतों में काम करती हैं या जंगलों में घास काटने जाती हैं तब अपने लोक गीतों को खूब गाती हैं.

इसी प्रकार अपने अराध्य देव को प्रसन्न करने के लिए ये लोक नृत्य करते हैं.

पौढ़ी गढ़वाल के त्योहारों मे साल्टा महादेव का मेला, देवी का मेला, भौं मेला, सुभनाथ का मेला और पटोरिया मेला प्रसिद्ध हैं.

ये हैं पर्यटन स्थल: पौड़ी गढ़वाल पर्यटन के लिहाज से भी काफी सम्पन्न जिला है.

यहां के पर्यटन स्थल में कंडोलिया का शिव मन्दिर और भैरोंगढ़ी में भैरव नाथ का मंदिर के अलावा बिनसर महादेव, खिर्सू, लाल टिब्बा, ताराकुण्ड, ज्वाल्पा देवी मन्दिर, नील कंठ का शिव मंदिर, देवी खाल का मां बाल कुंवारी मंदिर प्रमुख हैं.

यहां से सबसे नजदीक हवाई अड्डा जोली ग्रांट है. जोली ग्रांट पौढ़ी से 150-160 किमी की दुरी पर स्थित है.

रेलवे के नजदीक स्टेशन कोटद्वार ओर ऋषिकेश हैं. वहीं, सड़क मार्ग की बात करें तो यह जिला ऋषिकेश, कोटद्वार, हरिद्वार एवं देहरादून से जुड़ा हुआ है.

इतिहास: दस्तावेज के अनुसार, पौराणिक काल में भारतवर्ष में रजवाड़े निवास करते थे.

अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग राजवंशों का शासन था.

इसी प्रकार उत्तराखंड के पहाड़ों में सबसे पहला राजवंश “कत्युरी” था.

कत्युरी राजवंश ने अखंड उत्तराखंड पर शासन किया और शिलालेख और मंदिरों के रूप में कुछ महत्वपूर्ण निशान छोड़ गए.

कत्युरी के पतन के बाद माना जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र एक सरदार द्वारा संचालित 60 से अधिक चार राजवंशों में विखंडित कर दिया गया था. लेकिन तब प्रमुख सेनापति चंद्रपुरगढ़ क्षेत्र के थे.

हमलाों का सामना: चंद्रपुरगढ़ के राजा जगतपाल ने 1455
राजा अजयपाल और उनके उत्तराधिकारियों ने लगभग तीन सौ साल तक गढ़वाल के क्षेत्र पर शासन किया था.

इस अवधि के दौरान उन्होंने कुमाऊं, मुगल, सिख और रोहिल्ला से कई हमलों का सामना किया था.

गढ़वाल के इतिहास में दर्दनाक घटनाएं: गढ़वाल के इतिहास में कई बेहद दर्दनाक घटनाएं भी हुई हैं. इसके ऊपर गोरखों ने भी आक्रमण किया है.

डोटी और कुमाऊं पर कब्जा करने के बाद गोरखों ने गढ़वाल पर आक्रमण कर दिया. कहा जाता है कि गोरखों ने कई वर्षों तक गढ़वाल पर शासन किया था.

इसके बाद 1815 में अंग्रेजों ने गोरखों के जबरदस्त विरोध और चुनौती पेश करने के बावजूद उन्हें यहां से खदेड़ कर काली नदी के पार भेज दिया.

फिर 21 अप्रैल 1815 को अंग्रेजों ने पूरे क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया.

हालांकि, यह भी गुलामी ही थी लेकिन अंग्रेजों ने गोरखों की तरह क्रूरता नहीं दिखाई.

अंग्रेजों ने पश्चिमी गढ़वाल क्षेत्र अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के पश्चिम में अपना राज स्थापित कर लिया था.

साभार-न्यूज़ 18

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version