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घी संक्रांति 2021: जानिए कब और कैसे मनाया जाता है उत्तराखंड का लोकपर्व

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घी संक्रांति

घी संक्रांति उत्तराखंड का प्रमुख लोकपर्व है. घी संक्रांति, घी त्यार ,ओलगिया या घ्यू त्यार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह की सिंह संक्रांति के दिन मनाया जाता है. 2021 में घी संक्रांति 17 अगस्त 2021 को मंगलवार के दिन मनाई जाएगी. इस दिन से सूर्य भगवान सिंह राशी में विचरण करेंगे.

भगवान सूर्यदेव जिस तिथि को अपनी राशी परिवर्तन करते है. उस तिथि को संक्रांति कहा जाता है. और उत्सव मनाए जाते हैं. उत्तराखंड में मासिक गणना के लिए सौर पंचांग का प्रयोग होता है. प्रत्येक संक्रांति उत्तराखंड में माह का पहला दिन होता है, और उत्तराखंड में पौराणिक रूप से और पारम्परिक रूप से प्रत्येक संक्रांति को लोक पर्व मनाया जाता है. इसीलिए उत्तराखंड में कहीं कही स्थानीय भाषा मे त्यौहार को सग्यान (संक्रांति ) कहते हैं.

घी संक्रांति | घी त्यार | घी सग्यान की पौराणिक मान्यताएं –
उत्तराखंड के सभी लोक पर्वो की तरह घी संक्रांति भी प्रकृति एवं स्वास्थ को समर्पित त्यौहार है. पूजा पाठ करके इस दिन अच्छी फसलों की कामना करते हैं. अच्छे स्वास्थ के लिए,घी एवं पारम्परिक पकवान खाये जाते हैं.

घ्यू त्यार के दिन घी का प्रयोग जरूरी होता है –
उत्तराखंड की लोक मान्यता के अनुसार इस दिन घी खाना जरूरी होता है. कहते हैं, जो इस दिन घी नही खाता उसे अगले जन्म में घोंघा( गनेल) बनना पड़ता है. घी त्यार के दिन खाने के साथ घी का सेवन जरूर किया जाता है, और घी से बने पकवान बनाये जाते हैं. इस दिन सबके सिर में घी रखते हैं. बुजुर्ग लोग जी राये जागी राये के आशीर्वाद के साथ छोटे बच्चों के सिर में घी रखते हैं. और उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में घी, घुटनो और कोहनी में लगाया जाता है.

पौराणिक मान्यताओं एवं आयुर्वेद के अनुसार घी संक्रांति के दिन घी का सेवन करने से निम्न लाभ होते है –

घी संक्रांति के दिन घी का सेवन करने से ग्रहों के अशुभ प्रभावों से रक्षा होती है. कहा जाता है, जो इस दिन घ्यू (घी ) का सेवन करते हैं,उनके जीवन मे राहु केतु का अशुभ प्रभाव नही पड़ता है.
घी को शरीर मे लगाने से, बरसाती बीमारियों से त्वचा की रक्षा होती है. सिर में घी रखने से सिर की खुश्की नही होती. मनुष्य को चिंताओ और व्यथाओं से मुक्ति मिलती है. अर्थात सुकून मिलता है. बुद्धि तीव्र होती है.
इसके अलावा शरीर की कई व्याधियां दूर होती हैं. कफ ,पित्त दोष दूर होते है. शरीर बलिष्ठ होता है.

घी त्यार के दिन एक दूसरे को दूध, दही और फल सब्जियों के उपहार (भेंट ) बांटे जाते हैं –
घी संक्रांति या घी त्यार के दिन दूध दही, फल सब्जियों के उपहार एक दूसरे को बाटे जाते हैं. इस परम्परा को उत्तराखंड में ओग देने की परम्परा या ओलग परम्परा कहा जाता है. इसीलिए इस त्यौहार को ओलगिया त्यौहार, ओगी त्यार भी कहा जाता है. यह परम्परा चंद राजाओं के समय से चली आ रही है, उस समय भूमिहीनों को और शासन और समाज मे वरिष्ठ लोगों को उपहार दिए जाते थे. इन उपहारों में काठ के बर्तन ( स्थानीय भाषा मे ठेकी कहते हैं ) में दही या दूध और अरबी के पत्ते और मौसमी सब्जी और फल दिये जाते थे. यही परम्परा आज भी चली आ रही है.

इस दिन अरबी के पत्तों का मुख्यतः प्रयोग किया जाता है. सर्वोत्तम अरबी के पत्ते और मौसमी फल सब्जियां और फल अपने कुल देवताओं को चढ़ाई जाती है. उसके बाद गाँव के प्रतिष्ठित लोगो के पास ( पधान जी ) उपहार लेकर जाते हैं. फिर रिश्तेदारों को दिया जाता है.

घी संक्रांति के दिन उत्तराखंड के पारम्परिक पकवान बनाये जाते हैं –
घी संक्रांति , घी त्यार के दिन उत्तराखंड के पारम्परिक पकवान बनाये जाते हैं. घी संक्रांति के दिन पूरी , बड़े अरबी के पत्तों की सब्जी ,खीर पुए आदि बनाये जाते हैं.इस दिन उत्तराखंड का एक विशेष पकवान बनाया जाता है, जिसे बेड़ू रोटी कहा जाता है. बेड़ू रोटी को आटे में उड़द की दाल पीस कर डाली जाती है. इस समय पहाड़ी खीरा काफी मात्रा में होते हैं, इसलिए इस त्यौहार पर पहाड़ी खीरे का रायता भी जरूर बनाया जाता है.

घी संक्रान्ति की शुभकामनाएं
घी संक्रान्ति के दिन , बड़े बुजुर्ग अपने से छोटो के सिर में और नवजात बच्चों के तलवो में घी लगाते हुए आशीष वचन जी राये जागी राये बोल कर अपना आशीर्वाद देते हैं. घी संक्रांति की शुभकामनाएं देते हैं.

जी रये जागी रये,

यो दिन यो बार भेंटने रये.

दुब जस फैल जाए,

बेरी जस फली जाईये.

हिमाल में ह्युं छन तक,

गंगा ज्यूँ में पाणी छन तक,

यो दिन और यो मास

भेंटने रये..

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