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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, दो साल के लिए बढ़ सकता है लोन मोरेटोरियम

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सुप्रीम कोर्ट

कोरोना वायरस की वजह से लागू किए लॉकडाउन के दौरान लोन मोरेटोरियम 6 महीने के लिए दिया गया था. जिसकी अवधि 31 अगस्त को समाप्त हो गई. इस दौरान लोन मोरेटोरियम यानी लोन की किस्तें चुकाने के लिए मिले समय के दौरान ब्याज माफी के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट में आज (01 सितंबर) फिर सुनवाई शु्रु हुई. केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि ऋण स्थगन (मोरेटोरियम) दो साल के लिए बढ़ सकता है.

पिछली सुनवाई के दौरान इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि लोन मोरेटोरियम के मामले में अपना रूख जल्द स्पष्ट करें. साथ ही कोर्ट ने कहा कि अर्थव्यवस्था में समस्या सरकार के लॉकडाउन की वजह से आई है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वे इस मामले की सुनवाई करेंगे और सभी पक्षकारों के बीच कल सॉलिसिटर जनरल के माध्यम से मोरेटोरियम मुद्दे में अपना जवाब दाखिल किया.

सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने आगरा निवासी गजेन्द्र शर्मा की याचिका पर सुनवाई कर रही है. शर्मा ने अपनी याचिका में कहा है कि रिजर्व बैंक की 27 मार्च की अधिसूचना में किस्तों की वसूली स्थगित तो की गई है पर कर्जदारों को इसमें काई ठोस लाभ नहीं दिया गया है. याचिकाकर्ता ने अधिसूचना के उस हिस्से को निकालने के लिए निर्देश देने का आग्रह किया है जिसमें मोरेटोरियम अवधि के दौरान कर्ज राशि पर ब्याज वसूले जाने की बात कही गई है.

इससे याचिकाकर्ता जो कि एक कर्जदार भी है. उसका कहना है कि उसके समक्ष कठिनाई पैदा होती है. इससे उसको भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए जीवन के अधिकार की गारंटी मामले में रुकावट आड़े आती है.

सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले कहा था कि जब एक बार मोरेटोरियम तय कर दिया गया है तब उसे उसके उद्देश्य को पूरा करना चाहिए. ऐसे में हमें ब्याज के ऊपर ब्याज वसूले जाने की कोई तुक नजर नहीं आता है. सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि यह पूरी मोरेटोरियम अवधि के दौरान ब्याज को पूरी तरह से छूट का सवाल नहीं है बल्कि यह मामला बैंकों द्वारा बयाज के ऊपर ब्याज वसूले जाने तक सीमित है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह मुश्किल समय है ऐसे में यह गंभीर मुद्दा है कि एक तरफ कर्ज किस्त भुगतान को स्थगित किया जा रहा है जबकि दूसरी तरफ उस पर ब्याज लिया जा रहा है.

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