Home उत्‍तराखंड World Wildlife Day 2020: अभी नहीं चेते तो सिर्फ तस्वीरों में दिखेंगे...

World Wildlife Day 2020: अभी नहीं चेते तो सिर्फ तस्वीरों में दिखेंगे भूरा भालू, रेड फॉक्स और भरल

0
रेड फॉक्स - फोटो : प्रतीकात्मक फोटो

जिम काॅर्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क के साथ ही कई नेशनल पार्कों में पाए जाने वाले हिमालयन मस्क डियर यानी कस्तूरी मृग, स्नोलेपर्ड, भूरा भालू, रेड फॉक्स, भरल, पैंगोलिन समेत दर्जनभर से अधिक वन्यजीवों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है.

वन विभाग के ही आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड के जंगलों में सिर्फ 14 भूरा भालू, 172 स्लोथ भालू, 376 कस्तूरी मृग और 100 के करीब 12 बारहसिंघा बचे हैं. 

आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि अगर आने वाले समय में इन सभी वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर ठोस कदम नहीं उठाए गए तो वह दिन दूर नहीं जब देवभूमि से ये वन्यजीव खत्म हो जाएंगे.

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने भी साल 2020 में नीलगिरि थार, पिग्मी हॉग, हॉग डियर, एशियन एलीफेंट, स्नो लेपर्ड, रेड फॉक्स, ब्राउन डियर, एशियाटिक वाइल्ड ऐश समेत 51 प्रजातियों के वन्यजीवों को अति संकटग्रस्त वन्यजीवों की श्रेणी में शुमार किया है.

इन वन्यजीवों के विलुप्त होने का सबसे बड़ा खतरा
इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने फिलहाल जिन 10 प्रजातियों के वन्यजीवों के विलुप्त होने को लेकर चिंता जताई है, उनमें बंगाल टाइगर, एशियाई शेर, स्नो लेपर्ड, ब्लैकबक, रेड पांडा, वन हॉर्न्ड राइनोसेरॉस, नीलगिरी थार, कश्मीरी रैड स्टैग यानी हागुल, लायन टेल्ड मकाऊ व इंडियन विशन शामिल हैं.

भारतीय वन्यजीव संस्थान की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बंगाल टाइगर अब सिर्फ सुंदर वन नेशनल पार्क सरिस्का, नेशनल पार्क के अलावा जिम काॅर्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में ही बचे हैं. एशियाई शेरों जिन्हें पर्शियन लायन भी कहा जाता है इनकी भी संख्या बहुत कम बची है.

वन्यजीव विज्ञानियों के मुताबिक उच्च हिमालयीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले स्नो लेपर्ड उत्तराखंड के नंदा देवी पार्क के अलावा हेमिस नेशनल पार्क लद्दाख, दिबांग वाइल्डलाइफ सेंचुरी आंध्र प्रदेश, किब्बर वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी लाहौलस्पीति और ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क कुल्लू में ही बचे हैं.

नीलगिरि की पहाड़ियों से विलुप्त हो रहे नीलगिरि थार
वन्यजीव संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण भारत में नीलगिरि की पहाड़ियों में पाई जाने वाली नीलगिरि थार विलुप्त हो रही है. फिलहाल इसको इराबिकुलम नेशनल पार्क नीलगिरि हिल्स व पेरियार नेशनल पार्क में संरक्षित किया जा रहा है.

दुनिया के सबसे पुराने बंदरों में शुमार मकाउ के विलुप्त होने का खतरा
आईयूसीएन की रिपोर्ट में जिन वन्यजीवों के विलुप्त होने पर सबसे अधिक चिंता जताई है, उनमें दुनिया के सबसे पुराने बंदरों में शुमार लायन टेल्ड मकाउ बंदर भी शामिल है. देश के पश्चिमी घाटों में पाए जाने वाले मकाउ बंदर फिलहाल साइलेंट वैली नेशनल पार्क केरला, पलक्कड़ टाइगर रिजर्व तमिलनाडु व होनावारा रेन फॉरेस्ट हिल्स नार्थ वेस्ट घाट कर्नाटक में बचे हैं.

बारहसिंघा के विलुप्त होने का खतरा
आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 1964 में पूरे देश के वन क्षेत्रों में 4000 से अधिक बारहसिंघा विचरण करते थे, लेकिन अब इनकी संख्या तेजी से गिरी है. फिलहाल उत्तराखंड के अलावा असम व गुजरात के जंगलों में ही अब बारहसिंघा बचे हैं. उत्तराखंड में जिम कार्बेट व राजाजी टाइगर रिजर्व में सिर्फ 100 बारहसिंघा बचे हैं.

देश में 300 से अधिक वन्यजीवों की प्रजातियां संकटग्रस्त श्रेणी में शामिल
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक, देश में 300 से अधिक ऐसी प्रजातियों को चिन्हित किया गया है जो संकटग्रस्त श्रेणी में हैं. जबकि 70 ऐसे वन्यजीव हैं जो अति संकटग्रस्त श्रेणी में शामिल हैं. इन सभी वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के साथ ही तमाम राज्यों की सरकारों,  वन विभाग की ओर से कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं

बचे हैं कुछ ही स्लॉथ बियर
उत्तराखंड वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, राजाजी टाइगर रिजर्व और जिम कार्बेट टाइगर रिजर्व के अलावा संरक्षित क्षेत्रों के बाहर स्लोथ भालू यानी रीछ की संख्या कुल 172 है. जिनमें से 60 स्लॉथ बियर संरक्षित क्षेत्रों में हैं और 112 संरक्षित क्षेत्रों के बाहर हैं. सबसे खतरनाक स्थिति भूरा भालू को लेकर है जो पूरे राज्य में 14 बच्चे हैं, जिनमें से चार भूरा भालू संरक्षित क्षेत्रों में हैं जबकि 10 संरक्षित क्षेत्रों के बाहर चिन्हित किए गए हैं. 

डब्ल्यूआईआई ने तैयार किया 15 वर्षीय नेशनल वाइल्डलाइफ एक्शन प्लान
देश के तमाम टाइगर रिजर्व के अलावा जंगलों में वन्यजीवों को संरक्षित किया जा सके, इसके लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान की ओर से 15 वर्षीय नेशनल वाइल्डलाइफ एक्शन प्लान तैयार किया गया है. संस्थान के एक्शन प्लान को केंद्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से भी मंजूरी दे दी गई है. मंत्रालय के साथ ही वन अनुसंधान संस्थान व तमाम राज्य सरकारों की ओर से कार योजनाओं पर काम किया जा रहा है.

बंगाल टाइगर, एशियाई शेर, ब्लैकबक, नीलगिरि थार, स्नो लेपर्ड, कस्तूरी मृग, पैंगोलिन, कश्मीरी रैड स्टैग समेत संकटग्रस्त श्रेणी में शुमार वन्यजीवों को संरक्षित किया जा सके, इसके लिए संस्थान ने 15 वर्षीय नेशनल वाइल्डलाइफ एक्शन प्लान तैयार किया है.

2017 से लेकर 2031 तक संचालित होने वाले एक्शन प्लान के जरिये संकटग्रस्त, अति संकटग्रस्त के साथ ही तमाम वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर तमाम योजनाओं पर काम किया जा रहा है. जिसके कई सकारात्मक परिणाम भी सामने नजर आए हैं. 
– डॉ. धनंजय मोहन, निदेशक भारतीय वन्यजीव संस्थान 

साभार-अमर उजाला

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version