श्रीलंकाई खिलाड़‍ियों ने नए अनुबंध पर हस्‍ताक्षर करने से किया इंकार

कोलंबो|…. श्रीलंका की राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ियों ने क्रिकेट बोर्ड की ओर से पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाते हुए वार्षिक केंद्रीय अनुबंध पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है. खिलाड़ियों का यह फैसला आश्चर्यजनक नहीं था क्योंकि लगभग सभी सीनियर खिलाड़ियों ने एक साथ यह स्पष्ट कर दिया था कि श्रीलंका क्रिकेट (एसएलसी) द्वारा दिए गए अनुबंध उनकी पसंद के नहीं थे और अच्छा प्रदर्शन करने वाले कुछ खिलाड़ियों को इससे अलग रखा गया है.

खिलाड़ियों की ओर से जारी सामूहिक बयान के मुताबिक, ‘उन्होंने इंग्लैंड के आगामी दौरे के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर नहीं करने का फैसला किया. इसके साथ ही वे भविष्य में किसी और दौरे के लिए अनुबंध नहीं करेंगे.’ श्रीलंका क्रिकेट ने घोषणा की थी कि 24 प्रमुख खिलाड़ियों को चार श्रेणियों के तहत अनुबंध की पेशकश की गई थी और उन्हें इस पर हस्ताक्षर करने के लिए तीन जून तक की समय सीमा दी गई थी.

इस करार में वार्षिक रिटेनरशिप के तौर पर खिलाड़ियों को 70,000 से 100,000 डॉलर के बीच का करार था. टीम के स्टार बल्लेबाज धनंजय डी सिल्वा को सबसे अधिक भुगतान किया जाने वाला 100,000 डॉलर की श्रेणी में रखा गया था. पिछले महीने विवाद और बातचीत के बाद खिलाड़ियों ने कहा था कि उनकी प्रस्तावित पारिश्रमिक ‘फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल क्रिकेट एसोसिएशन (एफआईसीए)’ से प्राप्त जानकारी के अनुसार अन्य देशों के खिलाड़ियों को किए जाने वाले भुगतान की तुलना में तीन गुना कम है.

श्रीलंका को इंग्लैंड का दौरा करना है जहां टीम को 18 जून से चार जुलाई के बीच तीन वनडे और इतने ही टी20 इंटरनेशनल मैचों की सीरीज खेलनी है.
खिलाड़ियों ने हालांकि यह भी स्पष्ट किया है कि वे किसी भी समय देश के लिए खेलने से इनकार नहीं करेंगे, भले ही उन्होंने अनुबंध पर हस्ताक्षर नहीं किया हो और एसएलसी उन्हें उनके वेतन का भुगतान करने से मना कर दे. सीनियर खिलाड़ी इस बात से भी खुश नहीं थे कि एसएलसी ने उनके केंद्रीय अनुबंध की राशि का सार्वजनिक खुलासा कर दिया.

खिलाड़ियों ने दावा किया कि एसएलसी के फैसले ने उनके आत्मविश्वास और मन की शांति को प्रभावित किया है। क्रिकेट सलाहकार समिति (सीएसी) के अध्यक्ष अरविंद डी सिल्वा ने नये प्रदर्शन से जुड़े वेतन प्रणाली का बचाव करते हुए कहा कि तीनों प्रारूपों में टीम के खराब प्रदर्शन के बाद बोर्ड को यह फैसला करने पर मजबूर होना पड़ा।

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