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कट्टरपंथियों का राज: तालिबान की गिरफ्त में अब पूरा अफगानिस्तान, राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़ भागे

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आज हमारे देश में स्वतंत्रता दिवस धूमधाम के साथ मनाया गया. राष्ट्रीय पर्व पर देशवासियों में खुशियां छाई थी. लोगों ने तिरंगे के साथ आजादी का विजय उत्सव मनाया लेकिन अफगानिस्तान में इसके ‘उलट’ हुआ.

आज इस देश के लोगों की पूरी तरह आजादी छीन गई.’अफगानी जनता तालिबान के शिकंजे में कैद हो गई’. आखिरकार पूरा देश तालिबान की गिरफ्त में आ गया.

रविवार को कट्टरपंथी लड़ाकों ने राजधानी काबुल पर भी कब्जा कर लिया. तालिबान ने अफगान सरकार के आखिरी किले काबुल पर भी जीत हासिल कर अपना झंडा लगा दिया है.

यहां की आर्मी-पुलिस व्यवस्था पर कट्टरपंथियों का नियंत्रण हो गया है. काबुल की पुलिस आत्मसमर्पण करने लगी है. वह अपने हथियार तालिबान को सौंप रही है. रविवार को तालिबानियों के काबुल में दाखिल होते ही अफगान सरकार समझौता करने को तैयार हो गई. सत्ता का ट्रांसफर किया जा रहा है.

भारत समेत तमाम देश अफगानिस्तान पर नजर लगाए हुए हैं. वहीं राष्ट्रपति अशरफ गनी और उपराष्ट्रपति अमीरुल्लाह सालेह देश छोड़कर भाग गए हैं.

‘उपराष्ट्रपति सालेह ने कहा कि वह तालिबान के साथ नहीं रह सकते हैं. उन्होंने कहा कि वे तालिबान के आगे कभी नहीं झुकेंगे. मैं लाखों लोगों को निराश नहीं करूंगा, लोगों ने मुझ पर भरोसा किया है’.

वहीं अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने लोगों से अपील की है कि वह अपने घरों में ही रहें. दूसरी तरफ ‘अफगानिस्तान के रक्षा मंत्री ने कहा कि अशरफ गनी ने हमारे हाथ बांधकर हमें बेच दिया’.

बता दें कि मुल्ला बरादर देश की कमान संभाले जा रहे हैं। इसी के साथ तालिबान ने 20 साल बाद काबुल में फिर से अपनी ‘हुकूमत’ कायम कर ली है। 2001 में अमेरिकी हमले के कारण तालिबान को काबुल छोड़कर भागना पड़ा था.

राजधानी काबुल में इस समय चारों ओर अफरा-तफरी का माहौल है, लोग डर की वजह से जान बचाकर दूसरे देशों में भाग रहे हैं. भारत से लेकर अमेरिका तक तमाम देश अपने अपने अपने लोगों को वहां से बुलाने में लगा हुआ है.

‘पूरे देश में गृह युद्ध जैसे हालात बन गए हैं. कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं रह गई. भले ही तालिबान की ओर से शांति और सुरक्षा का आश्वासन दिया जा रहा है लेकिन लोगों को इनके ऊपर भरोसा नहीं है’.

यहां हम आपको बता दें कि अफगानिस्तान में तालिबान की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि अमेरिका के नेतृत्व में कई देशों की सेना के उतरने के बाद भी इसका खात्मा नहीं किया जा सका. तालिबान का प्रमुख उद्देश्य अफगानिस्तान में इस्लामिक अमीरात की स्थापना करना है. 1996 से लेकर 2001 तक तालिबान ने अफगानिस्तान में शरिया के तहत शासन भी चलाया.

जिसमें महिलाओं के स्कूली शिक्षा पर पाबंदी, हिजाब पहनने, पुरुषों को दाढ़ी रखने, नमाज पढ़ने जैसे अनिवार्य कानून भी लागू किए गए थे. 2001 से ही तालिबान अमेरिका समर्थित अफगान सरकार से जंग लड़ रहा है.

गौरतलब है कि अफगानिस्तान में तालिबान का उदय भी अमेरिका के प्रभाव से ही हुआ था. अब वही तालिबान अमेरिका के लिए सबसे बड़ा ‘सिरदर्द’ बना हुआ है.

1980 के दशक में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में फौज उतारी थी, तब अमेरिका ने ही स्थानीय मुजाहिदीनों को हथियार और ट्रेनिंग देकर जंग के लिए उकसाया था.

नतीजन, सोवियत संघ तो हार मानकर चला गया लेकिन अफगानिस्तान में एक कट्टरपंथी आतंकी संगठन तालिबान का जन्म हो गया.

फिलहाल इस देश में बद से बदतर हालात हैं. लाखों-करोड़ों अफगानी लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि इन कट्टरपंथियों से इस बार कब छुटकारा मिलेगा.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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