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देवस्थानम बोर्ड विधेयक को पारित कराने पर त्रिवेंद्र सिंह के खिलाफ हुआ था विरोध

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उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में चारधामों सहित प्रदेश के 51 मंदिरों के प्रबंधन के लिए एक अधिनियम के जरिये देवस्थानम बोर्ड का गठन किया गया था.

तीर्थ पुरोहित इसका शुरू से ही विरोध कर रहे हैं. पुजारी और पुरोहित और संत नौकरशाहों की जगह मंदिर का नियंत्रण उनके हाथ में देने की मांग कर रहे हैं. ‘तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने दिसंबर 2019 में विधानसभा के भीतर और बाहर विरोध के बीच उत्तराखंड चार धाम तीर्थ प्रबंधन विधेयक पेश किया था. इस विधेयक का उद्देश्य चार धामों, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के चार धामों और 49 अन्य मंदिरों को प्रस्तावित तीर्थ मंडल के दायरे में लाना था.

विधेयक विधानसभा में पारित हुआ और उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम, 2019 बन गया, इसी अधिनियम के तहत तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 15 जनवरी 2020 को उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम बोर्ड का गठन किया’. मुख्यमंत्री इस बोर्ड का अध्यक्ष होता है, जबकि धार्मिक मामलों के मंत्री बोर्ड के उपाध्यक्ष होते हैं. गंगोत्री-यमुनोत्री के दो विधायक मुख्य सचिव के साथ बोर्ड में सदस्य हैं.

एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी मुख्य कार्यकारी अधिकारी होता है. ‘उस दौरान त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि चारधाम देवस्थानम अधिनियम और उनके आसपास के मंदिरों की व्यवस्था में सुधार के लिए है’. लेकिन तीर्थ पुरोहित इसका शुरू से ही विरोध कर रहे हैं. उनका मानना है कि इसकी वजह से उनके पारंपरिक अधिकार प्रभावित हो रहे हैं. ‘इसी देवस्थानम बोर्ड को अब समाप्त करने के लिए तीर्थ पुरोहितों का पिछले कई दिनों से विरोध-प्रदर्शन चल रहा है’.

इसी साल मार्च में तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली थी तब कई तीर्थ पुरोहितों ने इस बोर्ड को समाप्त करने की मांग की थी, लेकिन अभी तक तीरथ सिंह रावत इस पर फैसला नहीं ले सके हैं. हालांकि मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद तीरथ सिंह रावत ने त्रिवेंद्र के फैसलों को रद कर दिया था लेकिन देवस्थानम बोर्ड को लेकर अभी तक अपने इरादे जाहिर नहीं किए हैं .

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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