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छाया बसंतोत्सव: धार्मिक परंपराओं के साथ ज्ञान और बुद्धि का भी प्रतीक है बसंत पंचमी का पर्व

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आज पूरे देश में बसंत पंचमी का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. यह एक ऐसा पर्व है जिसमें कई प्राचीन धार्मिक परंपराएं जुड़ी हुई हैं. इस दिन ज्ञान की देवी सरस्वती माता की आराधना की जाती है. बसंत पंचमी का संबंध ज्ञान और शिक्षा से है. हिंदू धर्म में मां सरस्वती को ज्ञान की देवी माना गया है.

बसंत पंचमी का दिन मांगलिक दृष्टि से भी शुभ मुहूर्त माना जाता है. नदियों में श्रद्धालु स्नान कर दान-पुण्य भी करते हैं. इसके साथ यह पर्व बसंत उत्सव का भी प्रतीक है. यानी खेतों में चारों ओर सरसों के पीले लहलहाते फूलों से वातावरण मन को आनंदित करते हैं. बता दें कि बसंत पंचमी माघ मास के शुक्ल पक्ष के 5वें दिन यानी पंचमी तिथि को मनाई जाती है.

शनिवार सुबह से ही प्रयागराज संगम, हरिद्वार और बनारस समेत कई नदियों में श्रद्धालु स्नान कर रहे हैं. इस दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा का विधान है. वहीं इस बार बसंत पंचमी इसलिए भी बेहद शुभ मानी जा रही है, क्योंकि पंचमी तिथि पर त्रिवेणी योग बन रहा है . बसंत पंचमी को श्रीपंचमी भी कहा जाता है. बसंत पंचमी पर पीले रंग का विशेष महत्व है.

इस दिन पीले वस्त्र पहनने की भी परंपरा है. इस विशेष दिन शादियों के लिए अबूझ मुहूर्त है . इसके साथ गृह प्रवेश से लेकर शुभ कार्य भी के दृष्टि से भी बसंत पंचमी का दिन सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. बसंत पंचमी पर शुभ मुहूर्त इस प्रकार है.

माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि शनिवार, 5 फरवरी को सुबह 03 बजकर 47 मिनट से प्रारंभ होकर, रविवार, 6 फरवरी को सुबह 03 बजकर 46 मिनट तक रहेगी. बसंत पंचमी की पूजा सूर्योदय के बाद और पूर्वाह्न से पहले की जाती है.

शंभू नाथ गौतम

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