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वर्ल्ड साइकिल डे विशेष: स्वच्छ पर्यावरण और अच्छे स्वास्थ्य के लिए आओ साइकिल को बनाएं सफर का ‘साथी’

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आज बात स्वच्छ पर्यावरण और अच्छे स्वास्थ्य को लेकर होगी. हम जिसकी चर्चा करने जा रहे हैं वह एक ऐसी सवारी है जो सभी से जुड़ी हुई है. यह बचपन से ही साथी बन जाती है. इसी पर सवार होकर बच्चे जीवन की ‘लंबी उड़ान’ भरने की कल्पना करने लगते हैं. कुछ याद आया या नहीं. चलिए हम ही बता देते हैं. इसका नाम है ‘साइकिल’. आज 3 जून है.

आज ‘अंतरराष्ट्रीय साइकिल दिवस दुनिया’ में मनाया जा रहा है. हमारे देश में साइकिल की शुरुआत वर्ष 1950 के दशक में हुई थी. उस दौर में सड़कों पर सुबह और शाम ऑफिस, स्कूल-कॉलेज फैक्ट्री समेत आदि स्थानों पर आने जाने वाले लोगों की ‘घंटी’ की आवाज सुनाई देती थी. उस दौरान गांव से लेकर शहर तक अधिकांश लोग साइकिल से ही सफर किया करते थे . किसान या ग्रामीण सभी साइकिल से ही आया-जाया करते थे, यही नहीं भारतीय डाक विभाग तो आज भी साइकिल से ही डाक बांटता है .‌ दूधवाले और अखबार वालों की पहली पसंद साइकिल ही रही है.‌

ऑफिस और स्कूलों में भी अधिकांश साइकिल से ही सवारी किया करते थे. लेकिन धीरे-धीरे समय बदला और साइकिल की घंटी की आवाज ‘मध्यम’ पड़ने लगी. कभी शान की सवारी समझी जाने वाली साइकिल को धीरे-धीरे लोगों ने भुला दिया. यही नहीं अधिकांश लोग तो साइकिल से चलने पर शर्मिंदगी भी महसूस करने लगे थे . साइकिल के स्थान पर मोटरसाइकिल, स्कूटर और कार ने लेेेे लिया, लेकिन हाल के वर्षों में भारत ही नहीं बल्कि विश्व के तमाम देशों में साइकिल को लोग एक बार फिर याद कर रहे हैं.

पिछले वर्ष शुरू हुई कोरोना महामारी के बाद देशवासियों ने महसूस करनेेेे लगे कि अपने आप को फिट रखने के लिए सबसे अच्छा ‘साधन’ साइकिल ही रहेगा. उसके बाद लॉकडाउन के दौरान साइकिल की उपयोगिता बढ़ती चली गई, जो आज भी जारी है. आम से लेकर खास सभी साइकिल चलाते दिखने लगे. मुंबई में तो मौजूदा समय में तमाम फिल्मी सितारे साइकिल चलाते हुए दिख जाते हैं. इसके साथ साइकिल की बिक्री में पिछले वर्ष से तेजी आ गई है. लोगों की डिमांड इतनी बढ़ गई कि साइकिल निर्माता कंपनियों को साइकिल का उत्पादन तेज बढ़ाना पड़ा है.

‘आओ स्वच्छ पर्यावरण और अच्छे स्वास्थ्य के लिए हम भी साइकिल को सफर का साथी बनाएं’. साइकिल ही ऐसी सवारी है जिसे बच्चे, जवान-बुजुर्ग हर आयु के वर्ग चला सकते हैं. साइकिल की सवारी मनुष्य को मानसिक, शारीरिक रूप से मजबूत बनाने का कार्य करती है. इसमें अन्य व्यायामों की तरह न चोटिल होने का डर है और न ही इसे चलाने में किसी विशेष तकनीकी ज्ञान की जानकारी की आवश्यकता होती है. साइकिल चलाने में शर्म नहीं करनी चाहिए बल्कि उनसे ‘प्रेरणा’ लेनी चाहिए जिनका साइकिल की सवारी शौक भी है और जरूरत भी .

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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