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कल से पितृपक्ष: पृथ्वी लोक पर आकर पूर्वज देते हैं आशीर्वाद, श्राद्ध, तर्पण-पिंडदान करने से प्रसन्न होते हैं पितर

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आज देश भर में अनंत चतुर्दशी का पर्व मनाया जा रहा है. हर साल अनंत चतुर्दशी के दिन ही 10 दिवसीय गणेश उत्सव का समापन हो जाता है और भगवान गणेश की मूर्तियों का विसर्जन होता है.

आज मुंबई समेत देश के तमाम शहरों में भगवान गणेश को विदाई दी जा रही. कल से पितृपक्ष आरंभ हो रहे हैं. हर साल भाद्रपद मास के शुक्‍ल पक्ष की पूर्णिमा से श्राद्ध शुरू होते हैं और अमावस्‍या तक चलते हैं.

इसे श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं और इस अमावस्‍या को सर्व पितृ अमावस्‍या कहते हैं. श्राद्ध 10 सितंबर से शुरू होकर 25 सितंबर को सर्व पितृ अमावस्‍या पर खत्‍म होंगे. इस दौरान कोई भी शुभ कार्य और मांगलिक कार्य करना वर्जित माना जाता है.

सनातन धर्म में श्राद्ध पक्ष का बहुत अधिक महत्व है. पितृपक्ष में हमें अपने पितरों को नियमित रूप से जल अर्पित करना चाहिए. मान्यता है कि इन 16 दिनों में पितृ लोक से हमारे पितृ धरती पर आते हें. इस दौरान वे अपने पुत्रों और परिवार के अन्य लोगों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं. श्राद्ध के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए.

इससे पितृ प्रसन्न होते हैं और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. पितृ पक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध कर्म का वर्णन महाभारत और रामायण की कथाओं में भी मिलता है. 16 दिनों तक चलने वाले इस धार्मिक कार्यक्रम में पूर्वज यानि पितरों को याद किया जाता है. इस बार ऐसा संयोग 12 साल बाद बना है, इस बीच 17 सितंबर ऐसी तारीख होगी, जब कोई श्राद्ध कर्म, तर्पण आदि नहीं किया जाएगा.

श्राद्ध पक्ष के दौरान श्राद्ध-तर्पण, पिंडदान करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है. पितृ पक्ष में पितरों की पूजा, तर्पण और पिंडदान करने से पितृ देव प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. आश्विन माह की कृष्ण अमावस्या को श्राद्ध का अंतिम दिन होता है.

इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या, पितृ अमावस्या अथवा महालय अमावस्या भी कहते हैं. सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है. इस दिन पितृ पृथ्वी लोक से विदा लेते हैं, इसलिए इस दिन पितरों का स्मरण करके जल अवश्य देना चाहिए. जिन पितरों की पुण्य तिथि की जानकारी न हो, उन सभी पितरों का श्राद्ध सर्व पितृ अमावस्या को करना चाहिए.

पितृ अमावस्या इसलिए अहम है क्योंकि इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है. हालांकि, हर महीने की अमावस्या को पिंडदान किया जाता है, लेकिन अश्विन मास की अमावस्या को अधिक फलदायी माना जाता है.

इतना ही नहीं, धार्मिक मान्यता ये भी है कि इस दिन पितर अपने प्रियजनों के द्वार पर श्राद्ध की इच्छा लेकर आते हैं . बता दें कि 25 सितंबर को पितरों की पृथ्वी से विदाई करने के बाद मां शक्ति की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्रि आरंभ हो जाएंगे.

पितृपक्ष में श्राद्ध की तिथियां इस प्रकार हैं–

10 सितंबर- पूर्णिमा व प्रतिपदा श्राद्ध

11 सितंबर- द्वितीया श्राद्ध

12 सितंबर- तृतीया श्राद्ध

13 सितंबर- चतुर्थी श्राद्ध

14 सितंबर- पंचमी श्राद्ध

15 सितंबर- छठी श्राद्ध

16 सितंबर- सप्तमी श्राद्ध

17 सितंबर- कोई श्राद्ध नहीं

18 सितंबर- अष्टमी श्राद्ध

19 सितंबर- नवमी श्राद्ध

20 सितंबर- दशमी श्राद्ध

21 सितंबर- एकादशी श्राद्ध

22 सितंबर- द्वादशी श्राद्ध

23 सितंबर- त्रयोदशी श्राद्ध

24 सितंबर- चतुर्दशी श्राद्ध

25 सितंबर- अज्ञात तिथि श्राद्ध’महालय’ श्राद्ध पक्ष

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