पूर्वोत्तर के शिवाजी: इतिहास के पन्नों में उचित सम्मान पाने से वंचित रहे लचित बरफुकन

आज महान योद्धा अहोम सेनापति लचित बरफुकन की 400वीं जन्म जयंती है। सेनापति लचित बरफुकन असम के एक ऐसे बहादुर योद्धा थे, जिन्होंने सीमित संसाधनों में मुगलों की विशाल सेना को, देशभक्ति और युद्ध कौशल के बल पर हराने का महान कार्य किया। जिस रूप में राजस्थान में महाराणा प्रताप को, महाराष्ट्र में शिवाजी को और पंजाब में गुरु गोबिंद सिंह को याद किया जाता है, उसी रूप में असम में लचित बरफुकन को भी याद किया जाता हैं।

बता दे कि जब भी असम में वीरगाथाओं की चर्चा होती है तो सरइघाट के युद्ध की चर्चा जरूर होती है, इसी युद्ध के महानायक लचित बरफुकन थे । इसी कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें भारत की ‘आत्मनिर्भर सेना का प्रतीक’ कहा है। हालांकि भारतीय इतिहास लेखन की भेदभावपूर्ण नीति के कारण इस योद्धा को इतिहास के पन्नों में स्थान नहीं मिल पाया जिसके वह हकदार थे। परन्तु अब असम और केंद्र सरकार की पहल पर लचित बरफुकन की वीरता, युद्ध कौशल और देशभक्ति की भावना से पूरे देश के लोगों का परिचय कराने के उद्देश्य से कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।

भारत के बेहद खूबसूरत, उपजाऊ और महत्वपूर्ण राज्य पर वर्ष 1225 ई से लेकर 1826 तक अहोम साम्राज्य का शासन था। अहोम साम्राज्य की स्थापना म्यांमार के शान प्रांत से आए छोलुंग सुकफा नामक राजा ने की थी। वर्ष 1826 में यांडाबू की संधि के साथ ही अहोम साम्राज्य का शासन समाप्त हुआ और यह क्षेत्र ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन आ गया। उस समय असम की बहुसंख्यक जनता हिंदू थी, इसलिए अहोम राजा ने हिंदू धर्म के सिद्धांतों के अनुरूप ही शासन किया।

बता दे कि जब बख्तियार खिलजी एक विशाल सेना लेकर दिल्ली से निकला तो नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट करते हुए बंगाल को जीता, फिर असम पर आक्रमण किया, परंतु वहां के वीरों से हारकर वह लौट आया। साथ ही वर्ष 1639 में मुगल सेनापति अल्लाह यारखां ने भी असम पर आक्रमण किया। अहोम राजाओं की आपसी फूट के कारण वह पश्चिमी असम पर कब्जा करने में सफल हुआ, लेकिन कुछ ही समय बाद राजा जयध्वज सिंह ने पश्चिमी असम से मुगलों को खदेड़ दिया।
इसके बाद जब औरंगजेब राजा बना तो उसने अपने सेनापति मीर जुमला को विशाल सेना के साथ असम पर आक्रमण करने के लिए भेजा। वर्ष 1662 में मीर जुमला ने वहां के सेनापति को घूस देकर असम को जीत लिया। और वर्ष 1663 ई में अहोम राजाओं और मुगलों के मध्य संधि हुई। संधि की शर्तों के अनुसार अहोम राजा मुगलों को हर वर्ष कुछ लाख रुपये और कई सौ हाथी भेजने को राजी हुए। अहोम राजा की राजकुमारी का विवाह औरंगजेब के बेटे के साथ हुआ और उसका मतांतरण कराते हुए उसका नाम रहमत बानो रखा गया। अहोम साम्राज्य की जनता और राजा जयध्वज के स्वाभिमान को इस संधि से काफी धक्का लगा और वे इस संधि को तोड़कर मुगलों से बदला लेना चाहते थे।

छत्रपति शिवाजी की सेना की तरह अहोम सैनिक भी गुरिल्ला युद्ध में विशेषज्ञ थे। लाचित बोड़फुकन की युद्ध नीति भी शिवाजी की तरह ही थी। यही कारण है कि लाचित को पूर्वोत्तर का शिवाजी भी कहा जाता है और यह केवल संयोग नहीं है कि औरंगजेब को दोनों से हार का सामना करना पड़ा।

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