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गुरु पूर्णिमा विशेष: देश में सदियों से चली आ रही गुरु-शिष्य की परंपरा आज भी कायम है

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बता दें कि सनातन परंपरा में गुरु का नाम ईश्वर से पहले आता है, क्योंकि गुरु ही होता है जो आपको गोविंद से साक्षात्कार करवाता है, उसके मायने बतलाता है. गुरु की शिक्षा शिष्यों के जीवन भर काम आती है बल्कि उन्हें आगे बढ़ने और हर कठिन रास्तों से गुजरने के लिए आसान बनाती है.‌

शिक्षक की बातें, नैतिकता ही ऐसी है जिसे शिष्य जीवन भर भूल नहीं पाता है.‌ हमारे देश में सदियों से चली आ रही गुरु शिष्य की परंपरा आज भी कायम है. गुरु की सीख हमें जीवन में आत्मबल प्रदान करती है. गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है.

जीवन में उनका स्वरूप किसी भी रूप में प्राप्त हो सकता है. यह शिक्षा देते शिक्षक का हो सकता है, माता-पिता हो सकते हैं, या कोई भी जो हमें ज्ञान के पथ का प्रकाश देते हुए हमारे जीवन के अधंकार को दूर कर सकता है. गुरु के पास पहुंचकर ही व्यक्ति को शांति, भक्ति और शक्ति प्राप्त होती है. गुरु पूर्णिमा गुरु को प्रणाम करने का अवसर है और यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का अहम त्योहार है.

भारतीय सभ्यता के हजारों सालों के इतिहास ने पूरी दुनिया पर अपनी जो छाप छोड़ी है उसमें गुरु शिष्य परंपरा एक अहम पहलू है. वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है.

वहीं अगर हम बात करें कि गुरु पूर्णिमा धार्मिक दृष्टि से भी बहुत महत्व रखती है.‌ इसी दिन दान और स्नान करने से बहुत ही पुण्य मिलता है. गुरु पूर्णिमा के बाद से ही सावन मास भी शुरू हो जाता है. ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं.

न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी. जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है. बता दें कि आषाढ़ पक्ष की पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा के तौर पर उत्साह के साथ मनाया जाता है.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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