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केंद्र के अध्यादेश से फिर दिल्ली के बॉस हो जाएंगे एलजी, पांच प्वाइंट्स में समझे

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दिल्ली का बॉस कौन होगा, इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में अरविंद केजरीवाल सरकार की दलीलों पर मुहर लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनी हुई सरकार जनता के लिए जवाबदेह होती है, लिहाजा अधिकारियों के ट्रांसफर और पॉवर का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होना चाहिए। जाहिर सी बात थी कि यह दिल्ली के उपराज्यपाल के लिए किसी झटके से कम नहीं था.

अदालती आदेश के बाद केजरीवाल सरकार ने कहा कि काम में रोड़ा अटकाने वाले अधिकारियों की छुट्टी होगी. कुछ ट्रांसफर भी किए लेकिन एलजी दफ्तर की तरफ से रुकावट आई. केजरीवाल सरकार भागे भागे फिर सुप्रीम कोर्ट गई.

लेकिन अब केंद्र सरकार ने ट्रांसफर पोस्टिंग के संदर्भ में अध्यादेश जारी किया है जिसके तहत दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना फिर ताकतवर हो गए हैं. इस पूरे मामले को कुछ खास बिंदुओं के जरिए समझने की कोशिश करेंगे.

ये हैं पांच खास प्वाइंट्स-:
1. केंद्र सरकार ने अध्यादेश के जरिए राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बनेगा जो ट्रांसफर- पोस्टिंग के साथ सतर्कता विभाग के कामकाज पर नजर रखेगी. इस प्राधिकरण में सीएम, मुख्य सचिव और प्रधानसचिव गृह होंगे. फैसला बहुमत से लिया जाएगा. लेकिन अंतिम फैसला उपराज्यपाल का होगा
2. आम आदमी पार्टी ने अध्यादेश को तानाशाही करार दे दिया. आप का कहना है कि बात तो फिर वही हुई कि दिल्ली सरकार को काम नहीं करने दिया जाएगा. अब इसके पीछे की डर समझिए.
3. दरअसल प्राधिकरण में दो सदस्यों मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव गृह की नियुक्ति केंद्र करता है लिहाजा दिल्ली सरकार का पलड़ा हमेशा कमजोर रहेगा.
4. जानकार कहते हैं कि प्राधिकरण के फैसले में दिल्ली सरकार बहुमत में होती है तो उस दशा में भी अंतिम फैसला तो उपराज्यपाल को ही करना है.
5. अध्यादेश में एक खास बात का भी जिक्र है कि अगर सिविल सेवा प्राधिकरण की तरफ से दूसरी दफा एलजी को वही प्रस्ताव भेजा जाता है तो उन्हें मंजूरी देनी पड़ेगी.

आप ने जताई नाराजगी
आप ने कहा कि केंद्र सरकार का अध्यादेश तो सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है. जब एलजी और केंद्र सरकार की मर्जी के मुताबिक फैसला नहीं आया तो बैकडोर से एक बार फिर दिल्ली सरकार पर लगाम लगाया है. यह केंद्र सरकार का डर है, केंद्र की मोदी सरकार पार्टी की लोकप्रियता से डरी हुई है. कांग्रेस ने भी इसे मोदी सरकार का डर बताया. कांग्रेस का कहना है कि आखिर जब सरकारें इस तरह से न्यायिक फैसलों का सम्मान नहीं करेंगी तो व्यवस्था कैसे चलेगी. आप फौरी तौर पर अपनी राजीनितक मंशा को हासिल कर सकते हैं. लेकिन देश के लिए यह शुभ संकेत नहीं है.

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