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न्यायपालिका से टकराव के चलते गई रीजीजू की कुर्सी, जानें कब-कब दिया विवादित बयान

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केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू से गुरुवार को उनका यह पद सरकार ने ले लिया. कानून मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार अर्जुन राम मेघवाल को दिया गया है. रीजीजू को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय दिया गया है. रीजीजू से प्रतिष्ठित मंत्रालय की जिम्मेदारी लेना चर्चा का विषय बना हुआ है. जानकारों का मानना है कि पिछले कुछ समय से कॉलेजियम से लेकर अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर रीजीजू का दिया गया बयान उनके खिलाफ गया है.

ऐसे कई मौके आए जब रीजीजू न्यायपालिका की आलोचना करते दिखे. खासकर हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्तियों के बार में उन्होंने जो टिप्पणियां की, इसे न्यायपालिका के साथ उनके टकराव के रूप में देखा गया.

अरुणाचल प्रदेश से तीन बार के लोकसभा सांसद रीजीजू ने न्यायालयों में जजों की नियुक्ति करने वाली कॉलेजियम व्यवस्था को ‘एलियन’ कहा. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि रिटायर होने के बाद कुछ जज ‘एंटी इंडिया गैंग’ के हिस्सा बन गए हैं. रीजीजू की इस तरह की टिप्पणियों को न्यायपालिका पर हमले के रूप में लिया गया. उनके इन बयानों पर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी.

अपनी फिटनेस को लेकर सुर्खियों में रहने वाले 51 साल के युवा सांसद भाजपा सरकार में कई महत्वपूर्ण पद संभाल चुके हैं. वह गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री, अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री, युवा एवं खेल मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. साल 2021 में उन्हें केंद्रीय कानून मंत्री बनाया गया.

मोदी सरकार में पूर्वोत्तर भारत के चेहरे रीजीजू ने कुछ दिनों पहले कॉलेजियम सिस्टम को ‘अंकल जज सिंड्रोम’ तक कह दिया. उनके इस बयान ने नए विवाद और न्यायपालिका के साथ उनके टकराव को और बढ़ा दिया. उन्होंने जजों की नियुक्ति के बारे में खुफिया एजेंसियों की रिपोर्टों को सार्वजनिक किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम व्यवस्था की आलोचना करते हुए अपनी नाखुशी जाहिर की.

यही नहीं कुछ समय पहले रीजीजू ने यह भी कहा कि देश की न्यायपालिका को कमजोर एवं इसे सरकार के खिलाफ करने के प्रयास किए जा रहे हैं. अपने इस बयान के लिए भी उन्हें विपक्ष के हमलों का सामना करना पड़ा. यही नहीं समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई पर रीजीजू ने टिप्पणी की. वह इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत के लिए एक ‘लक्ष्मण रेखा’ खींचते हुए दिखे. उन्होंने कई मौकों पर कहा कि समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने के बारे में अंतिम फैसला देश की संसद करेगी. उन्होंने कहा कि लोगों की आकांक्षाओं का प्रदर्शन कोर्ट नहीं बल्कि संसद करती है.

न्यायपालिका के साथ अपने मतभेदों को रीजीजू ने कमतर दिखाने की भी कोशिश की. उन्होंने कहा कि सरकार और न्यायपालिका के बीच कोई ‘महाभारत’ नहीं है लेकिन लोकतंत्र में ‘बहस और चर्चा’ जरूरी है. एक बार रीजीजू ने कहा कि फैसला सुनाए जाते समय न्यायाधीश सतर्क हैं लेकिन नेताओं की तरह उन्हें चुनाव का सामना नहीं करना पड़ता.

गत नवंबर में जजों की नियुक्तियों में हुई देरी पर उन्होंने अपनी नाखुशी जाहिर की. रीजीजू ने कहा, ‘यह मत कहिए सरकार फाइलों को दबाकर बैठी है. वे सरकार के पास फाइल नहीं भेजते. आप खुद नियुक्ति करते हैं तो चीजों को आपको देखना चाहिए.’

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