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बढेंगी आनंद मोहन की मुश्किलें, नीतीश सरकार से सुप्रीमकोर्ट ने मांगा रिहाई से जुड़ा रिकॉर्ड

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बिहार के बाहुबली आनंद मोहन रिहाई मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को मूल रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया है. 1994 में गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की मॉब लिंचिंग के लिए आजीवन कारावास की सजा पाने वाले आनंद मोहन को कानून में फेरबदल के बाद राहत मिली थी. नीतीश सरकार के फैसले के बाद मोहन को जेल से रिहा कर दिया गया था. कृष्णैया के परिजनों ने इसका विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि आनंद मोहन की रिहाई से जुड़ा मूल रिकॉर्ड पेश किया जाए. अदालत ने जवाब दाखिल के लिए सरकार को और वक्त दिया है. अगली सुनवाई 8 अगस्त को होगी.

आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ जी कृष्णैया की पत्नी उमा ने याचिका दाखिल की है. आनंद मोहन को पिछले महीने अप्रैल में जेल से रिहा किया गया था. इसका बिहार आईएएस एसोसिएशन ने भी विरोध किया था.

उमा कृष्णैया ने 1 मई को बाहुबली नेता की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट याचिका दायर की थ. इस पर सुप्रीम कोर्ट आठ मई को सुनवाई के लिए तैयार हो गया था. 1994 में गोपालगंज जिले के आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या कर दी गई थी. इस मामले में बाहुबली नेता आनंद मोहन प्रमुख आरोपी थे. भीड़ को उकसाने के मामले में वह दोषी पाए गए थे, जिसके बाद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी. हालांकि, बाद में कोर्ट ने उनकी सजा को बदलकर उम्रकैद में तब्दील कर दिया था.

बिहार की नीतीश सरकार ने बीते 10 अप्रैल को जेल मैनुअल में बदलाव किया था. इस बदलाव के तहत आनंद मोहन समेत 26 कैदियों को सहरसा जेल से रिहा किया गया था. बिहार सरकार ने जिस नियम को बदला था, उसमें पहले ड्यूटी के दौरान हत्या के मामले में जेल से रिहाई का प्रावधान नहीं था. सरकार ने इसे बदल दिया, जिसके बाद आनंद मोहन को रिहा किया गया. उसकी रिहाई के बाद से नीतीश सरकार की आलोचना हुई. दिवंगत आईएएस जी. कृष्णैया की पत्नी व बेटी ने भी आनंद मोहन की रिहाई पर सवाल खड़े किए थे.

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