नैनीताल: जहां मिट्टी तक नहीं खिसक रही थी, वहां टूट रहे पहाड़, क्या ये है किसी आने वाली आपदा का संकेत?

19वीं सदी में एक अंग्रेज भूगर्भ शास्त्री ने नैनीताल का अध्ययन किया था। उसने उल्लेख किया कि यदि उसे नैनीताल के संवेदनशील क्षेत्रों को चिन्हित करने का काम सौंपा जाए, तो उसे गालियों की बौछार का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि उस समय भी मिट्टी लगातार खिसक रही थी और आज भी यही स्थिति बनी हुई है।

नैनीताल एक खूबसूरत नगर है जो तीन ओर से ऊँची पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इसके उत्तर में मल्लीताल की ओर नैना पीक की ऊँचाई है, जबकि एक ओर अयारपाटा और दूसरी ओर शेर का डांडा पर्वत हैं। नगर की नींव बलियानाला के किनारे स्थित है।

हाल ही में, इन तीनों पहाड़ियों में भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ गई हैं, जो कि नैनीताल के लिए चिंता का विषय बन गई हैं। भूवैज्ञानिकों के अनुसार, नैनीताल की भूमि अब अतिरिक्त भार सहन करने की स्थिति में नहीं है। यदि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य जारी रहता है, तो शहर के धंसने का खतरा बढ़ सकता है।

कुमाउं यूनिवर्सिटी के जर्नलिज्म डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष, डॉ. गिरीश रंजन तिवारी के अनुसार, नैनीताल नगर पिछले पांच वर्षों से भूस्खलन की समस्याओं का सामना कर रहा है। विशेषकर हल्द्वानी मार्ग से नीचे बालियानाला क्षेत्र में भूस्खलन की समस्या का इतिहास 150 साल पुराना है।

चिंता की बात यह है कि हाल के 25 वर्षों में और विशेष रूप से पिछले पांच वर्षों में ऐसे कई नए स्थानों पर भूस्खलन हुआ है जहां पहले कभी ऐसी घटनाएं नहीं देखी गई थीं। लोअर माल रोड, आयारपाटा पहाड़ी के पास पाषण देवी मंदिर, टिफिन टॉप, चार्टन लॉज क्षेत्र, किलबरी रोड और खूपी गांव जैसे स्थानों में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं। इसके प्रमुख कारणों में भारी निर्माण कार्य, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, नालों की सफाई की कमी और नगर में बढ़ते ट्रैफिक का दबाव शामिल हैं।

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