मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में कोल्ड्रिफ कफ सिरप के सेवन से 19 बच्चों की दर्दनाक मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. अब तमिलनाडु सरकार की रिपोर्ट में सामने आए खुलासों ने इस हादसे को और भी भयावह बना दिया है. इस मामले में लगातार कई तरह के अपडेट सामने आ रहे हैं. अब एक बड़ी जानकारी मिली है कि इस सिरप को लेकर दवाई कंपनी ने एक दो नहीं बल्कि 350 से ज्यादा मानकों का उल्लंघन किया है. वहीं अब ये मामले सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. एक याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से न्याय की बात कही गई है.
तमिलनाडु ड्रग कंट्रोल विभाग की जांच में सामने आया है कि कफ सिरप का निर्माण बेहद गंदे और अव्यवस्थित माहौल में किया जा रहा था. फैक्ट्री में 350 से ज्यादा कमियां पाई गईं. न सिर्फ हाइजीन का अभाव था, बल्कि न तो योग्य स्टाफ था और न ही आधुनिक मशीनरी.
जांच के दौरान 2 अक्टूबर (गांधी जयंती) और दशहरे की छुट्टी के बावजूद विभाग ने काम किया, जिससे पता चलता है कि प्रशासनिक स्तर पर गंभीरता दिखाई गई.
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि दवा में डाइएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) और प्रोपलीन ग्लाइकोल का मिलावटी उपयोग किया गया. DEG आमतौर पर ब्रेक फ्लुइड, पेंट और प्लास्टिक जैसे औद्योगिक उत्पादों में इस्तेमाल होता है और इसका उपयोग खाद्य या औषधीय उत्पादों में सख्त वर्जित है.
कंपनी की ओर से प्रोपलीन ग्लाइकोल बिना किसी चालान के 50-50 किलो की मात्रा में खरीदा गया, जो कि कानूनी उल्लंघन है. अक्सर सस्ते विकल्प के रूप में DEG का इस्तेमाल किया जाता है, जो किडनी फेलियर और मौत जैसी घटनाओं का कारण बनता है.
15 बच्चों की मौत के बाद केंद्र सरकार और राज्य सरकारें हरकत में आईं. मध्य प्रदेश में तीन अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया और ड्रग कंट्रोलर का तबादला कर दिया गया. कई राज्यों ने कोल्ड्रिफ सिरप की बिक्री पर रोक लगाई, और देशभर में स्टॉक की जांच व जब्ती की जा रही है. केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों ने दवा संबंधी नियमों को और कड़ा कर दिया है.
एमपी के छिंदवाड़ा से एक और बच्ची की मौत की खबर सामने आई है. किडनी फेल होने के चलते तामिया इलाके की रहने वाली डेढ़ साल की धानी डेहरिया की मौत हो गई है. बताया जा रहा है कि बीते 26 सितंबर से नागपुर के मेडिकल हॉस्पिटल में वह भर्ती थी. खास बात यह है कि इसका इलाज भी किडनी फेलियर मामले में आरोपी बनाए गए डॉक्टर प्रवीण सोनी ने ही किया था.