उपराष्ट्रपति चुनाव के परिणाम घोषित हो चुके हैं लेकिन इसकी धूल अभी भी राजनीतिक हलकों में छाई हुई है. विपक्षी इंडिया ब्लॉक के लिए यह चुनाव न केवल हार का प्रतीक है, बल्कि आंतरिक एकजुटता पर गहरा सवाल खड़ा करता है. लगभग 15 सांसदों के क्रॉस वोटिंग ने गठबंधन की नींव को हिला दिया है. इससे कई दलों को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ रहा है कि क्या यह साझा प्रयास वाकई एनडीए को चुनौती देने लायक था? कांग्रेस के नेतृत्व में चले इस अभियान ने जहां एकता का दिखावा किया, वहीं आंतरिक मतभेदों ने गठबंधन की कमजोरियों को उजागर कर दिया.
उपराष्ट्रपति चुनाव में इंडिया ब्लॉक ने बी. सुदर्शन रेड्डी को सर्वसम्मति से अपना उम्मीदवार चुना जो कांग्रेस की प्रबंधन क्षमता का प्रतीक था. मानसून सत्र के दौरान SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) यानी मतदाता सूची संशोधन मुद्दे पर दिखी विपक्षी एकजुटता को वोटिंग तक खींचने की कोशिश की गई. टीएमसी, एसपी और डीएमके जैसे प्रमुख दलों ने सक्रिय रूप से प्रचार भी किया, लेकिन बाकी घटक दलों की उदासीनता स्पष्ट तौर पर दिख रही थी. केवल एक बैठक आयोजित की गई. उसमें भी राहुल गांधी अनुपस्थित रहे. इससे गठबंधन की रणनीतिक तैयारी पर सवाल उठे.
दूसरी ओर एनडीए ने अपनी मजबूत संख्या के बावजूद दो दिवसीय वर्कशॉप आयोजित की. मतदान के दिन वरिष्ठ मंत्रियों द्वारा सांसदों के साथ नाश्ते पर बैठकें की गईं, जो एकता का संदेश देती रहीं. एनडीए सांसद एक साथ संसद पहुंचे, जो उनकी अनुशासन को दर्शाता है. इसकी तुलना में इंडिया ब्लॉक की बिखराव वाली तस्वीर ने विपक्षी एकता में सेंध लगाई. क्रॉस वोटिंग का घटना-चक्र सबसे शर्मनाक रहा. लगभग 15 सांसदों ने इंडिया उम्मीदवार के पक्ष में न जाकर एनडीए को समर्थन दिया, जो फ्लोर मैनेजमेंट की कुल विफलता को उजागर करता है. यह घटना इंडिया ब्लॉक के घटक दलों के बीच पहले से मौजूद असंतोष को हवा देती है.
टीएमसी ने हमेशा कांग्रेस की चुनावी क्षमता पर संदेह जताया है. ममता बनर्जी की पार्टी के लिए यह घटना एक पुष्टि जैसी हो सकती है कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के साथ गठजोड़ जोखिम भरा है. पश्चिम बंगाल में 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले टीएमसी को यह सोचना पड़ेगा कि इंडिया ब्लॉक में रहना उसके लिए कितना फायदेमंद रहेगा. इसी तरह राजद भी बिहार में चुनावों का सामना कर रही है. वह भी चिंतित हो सकती है.