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मथुरा में होली का खुमार छाने लगा, देश और विदेशों से हर वर्ष ब्रज पहुंचते हैं हजारों श्रद्धालु

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आज बात होगी कृष्ण नगरी मथुरा की । मथुरा को ब्रज का गढ़ कहा जाता है । भगवान कृष्ण के जन्म से लेकर उनके जीवन की कई गाथाओं को जानने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु यहां आते हैं । कृष्ण जन्माष्टमी पर मथुरा में देश-विदेश से हजारों भक्तों खिंचे चले आते हैं । इसके अलावा मथुरा से 15 किलोमीटर दूर वृंदावन में तो हजारों भक्त विभिन्न देशों के कृष्ण भक्ति में लीन होते दिख जाएंगे । वैसे तो यह कृष्ण नगरी पूरे वर्ष धार्मिक छटा बिखेरती है। लेकिन जब-जब फागुन का महीना आता है तब मथुरा रंगों से सराबोर दिखाई पड़ता है । जी हां आज हम बात करेंगे रंगो के पर्व होली की ।

भले ही देश में कोरोना महामारी की रफ्तार एक बार फिर तेजी के साथ बढ़ रही है लेकिन मथुरा में होली उत्सव का खुमार चारों ओर छा गया है । ब्रजभूमि मथुरा, वृंदावन, नंदगांव, गोकुल और बरसाना की होली तो भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में मशहूर है क्योंकि इसका संबंध राधा-कृष्ण से है। यहां हर दिन अलग-अलग अंदाज में होली मनाई जाती है।

किसी दिन फूलों की होली तो किसी दिन की लड्डूओं से होली खेली जाती है, किसी दिन लठामार होली तो किसी दिन छड़ी वाली होली और आखिर में रंग-गुलाल और अबीर वाली होली।देशभर में जहां सिर्फ एक दिन के लिए होली का त्योहार मनाया जाता है वहीं, ब्रजभूमि के हर मंदिर और गांव में 40 दिनों तक होली का उत्सव चलता है। जिसकी शुरुआत बसंत पंचमी से ही मानी जाती है ।

ब्रज की होली में शामिल होने के लिए हर वर्ष देश विदेश से लोग हजारों की संख्या में आते हैं । बता दें कि दो दिन पहले गोकुल के समीप स्थित रमणरेती आश्रम में पारंपरिक होली का आयोजन किया गया। हालांकि कोरोना के बढ़ते प्रसार को देखते हुए इस बार होली कुछ अलग रही। भगवान रमण बिहारी ने राधा और भक्तों के संग केवल फूलों की होली खेली। इस बार टेसू या गुलाल के गीले रंगों का प्रयोग नहीं किया गया।

22 मार्च को ब्रज की पहली होली लड्डू से खेली जाएगी—

22 मार्च को ब्रज की पहली होली लड्डू से खेली जाती है। इस होली को खेलने के लिए भी लोगों में खूब उत्साह छाया रहता है । इस दिन राधे रानी के गांव बरसाना में लड्डू से होली खेली जाएगी। जिसमें श्रद्धालुओं पर कई किवंटल लड्डू लुटाए जाते है। ऐसी मानता है कि द्वापरयुग में राधारानी के होली निमंत्रण को स्वीकृति देने के लिए कृष्ण अपने सखा को बरसाना भेजते हैं। जिसका लड्डुओं से सखियां स्वागत व सत्कार करती है।

लेकिन सखियों के प्रेम को देखकर कृष्ण का सखा लड्डू खाता है और लुटाता है। उसी परंपरा पर लड्डू होली की शुरुआत हुई थी । लड्डू होली के दो दिन बाद लठामार होली खेली जाती है । यहां हम आपको बता दें कि 23 मार्च को बरसाना गांव में नंदगांव के हुरयारों संग बरसाना की हुरयारिन लठामार होली खेलेंगी।

24 मार्च को नंदगांव में लठामार होली का आयोजन होगा। पुरुषों को हुरियारे और महिलाओं को हुरियारन कहा जाता है। इसके बाद सभी मिलकर रंगों से होली का उत्सव मनाते है। लठामार होली वाले दिन सुबह से ही इसकी तैयारियां शुरू हो जाती हैं। दिन चढ़ने के साथ ही नंदगांव के लोग बरसाना पहुंचते हैं। गीत गाकर, गुलाल उड़ाकर एक दूसरे के साथ ठिठोली करते हैं। इसके बाद वहां की महिलाएं नंदगांव के पुरुषों पर लाठियां बरसाती हैं

और वे ढाल लेकर अपना बचाव करते हैं। होली खेलने वाले पुरुषों को होरियारे और महिलाओं को हुरियारिनें कहा जाता है। लड्डू होली के बाद 25 मार्च को बांके ब‍ि‍हारी मंद‍िर में फूलों वाली और रंगभरनी होली मनाई जाएगी। इसके अलावा 26 मार्च को गोकुल में होली खेली जाएगी। वृंदावन में 27 मार्च को अबीर और गुलाल का रंग चढ़ेगा। 28 मार्च को बांके ब‍िहारी मंद‍िर में होल‍िका दहन। 29 मार्च को द्वारकाधीश मंद‍िर और ब्रज में पानी के साथ रंगों की होली खेली जाएगी।

हर बार की तरह इस बार मथुरा में होली खेलने के लिए अन्य राज्यों से आने वाले लोगों की संख्या कोरोना महामारी की वजह से कम ही रहेगी । लेकिन बृजवासी होली उत्सव में रंगे हुए दिखाई दे रहे हैं।

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