भारत-पाकिस्तान सर क्रीक विवाद: जानिए क्या है यह सीमा विवाद और क्यों है इतना अहम?

भारत और पाकिस्तान के बीच सर क्रीक विवाद एक पुराना और जटिल सीमा–समुद्री विवाद है। सर क्रीक गुजरात के रण ऑफ कच्छ में एक ज्वारीय नहर (tidal estuary) है, जो भारत के कच्छ और पाकिस्तान के सिंध प्रांत के बीच स्थित है।

विवाद की शुरुआत

विवाद की जड़ें ब्रिटिश राज के समय की 1914 की बॉम्बे गवर्नमेंट रेसोल्यूशन में पाई जाती हैं। उस रेसोल्यूशन की धारा 9 कहती है कि सीमा “क्रीक के पूरब” है (मतलब क्रीक पाकिस्तान की तरफ), जबकि धारा 10 कहती है कि चूँकि यह क्रीक अधिकतम समय में जलमार्गीय (navigable) है, सीमा मुख्य जलधारा (मध्य-नहर) से चली जानी चाहिए।

स्वतंत्रता के बाद 1947 में विभाजन के बाद, पाकिस्तान ने पूरे सर क्रीक पर दावा किया। भारत, दूसरी ओर, मध्य चैनल (thalweg principle) के अनुसार विभाजन की दावेदारी करता है — वह मानता है कि क्रीक उच्च ज्वार पर नौकायन योग्य है और अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार सीमा मध्य-नहर से होनी चाहिए।

विवाद का महत्व

समुद्री सीमाएँ / EEZ — सर क्रीक की सीमांकन से भारत-पाकिस्तान की समुद्री सीमाएँ तय होंगी और इससे Exclusive Economic Zone (EEZ) में कौन सा देश किन संसाधनों तक पहुंच पाएगा, यह प्रभावित होगा।

मछली पकड़ना और जीविका — इस क्षेत्र में मछुआरों के लिए पारंपरिक अधिकार हैं और विवाद के कारण अक्सर मछुआरे सीमाओं को पार कर जाते हैं और दोनों पक्षों द्वारा गिरफ्तारी की घटनाएँ होती हैं।

सांस्कृतिक-राजनीतिक संवेदनशीलता — यह विवाद दोनों देशों के बीच रणनीतिक और राजनयिक तनाव को और बढ़ा सकता है।

प्रयास और चुनौतियाँ

– 1968 में भारत-पाकिस्तान ने Rann of Kutch विवाद में मध्यस्थता के Tribunal की प्रक्रिया अपनाई, जिसमें अधिकांश रान का हिस्सा भारत को मिला, लेकिन सर क्रीक पर फैसला नहीं हुआ।
– भारत ने सुझाव दिया है कि पहले समुद्री सीमा (sea boundary) निर्धारित की जाए और फिर सर क्रीक को सीमांकन किया जाए। पाकिस्तान इस प्रस्ताव से सहमत नहीं है।
– भारत ने तट रेखा (thalweg) सिद्धांत अपनाया है जबकि पाकिस्तान इसे लागू करने से इनकार करता है, यह कहकर कि क्रीक पूर्णतः नौकायन योग्य नहीं है।
– जलवायु परिवर्तन (sea level rise) और क्रीक की दिशा में समय-समय पर बदलाव इस विवाद को और जटिल बनाते हैं।

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