25 जून 1975 का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज है। इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘आंतरिक अशांति’ का हवाला देते हुए आधी रात को देश में आपातकाल (Emergency) लागू कर दिया। यह निर्णय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत लिया गया, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने मंजूरी दी।
इस ऐलान के साथ ही देश की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक ताकत — जनता की आवाज — को दबा दिया गया। प्रेस पर कड़ी सेंसरशिप लगा दी गई, विपक्ष के प्रमुख नेताओं जैसे जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी सहित हजारों लोगों को जेल में डाल दिया गया। देशभर में विरोध करने वालों को बिना वारंट के गिरफ्तार किया गया और आम लोगों के मौलिक अधिकारों को पूरी तरह से निलंबित कर दिया गया।
इस पूरे घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में इलाहाबाद हाईकोर्ट का वह फैसला था, जिसमें इंदिरा गांधी के चुनाव को गैरकानूनी घोषित किया गया था। इसके बाद राजनीतिक संकट और बढ़ गया और इंदिरा गांधी ने सत्ता को बचाने के लिए आपातकाल लागू कर दिया।
आपातकाल की अवधि 21 महीने तक चली और 21 मार्च 1977 को इसे हटाया गया। इसके बाद हुए आम चुनावों में इंदिरा गांधी और उनकी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा।
आपातकाल का यह दौर भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गहरी सीख है — कि जनता की शक्ति सर्वोपरि है और लोकतंत्र को बनाए रखना हर नागरिक की जिम्मेदारी है। 25 जून का दिन आज भी हर वर्ष लोकतंत्र की चेतना को मजबूत करने और इतिहास से सबक लेने का दिन माना जाता है।