अमेरिका में ट्रंप प्रशासन द्वारा 1,000 से अधिक अंतरराष्ट्रीय छात्रों के वीज़ा या कानूनी स्थिति रद्द करने से शिक्षा जगत में हलचल मच गई है। इन छात्रों में हार्वर्ड, स्टैनफोर्ड और यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के विद्यार्थी शामिल हैं। कई छात्रों ने इस कदम को संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए मुकदमे दायर किए हैं। उनका कहना है कि उन्हें मामूली अपराधों, जैसे ट्रैफिक उल्लंघनों के लिए दंडित किया गया है, जो उनके वीज़ा रद्द करने का उचित कारण नहीं है ।
इस कार्रवाई के तहत, अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने ‘कैच एंड रिवोक’ नामक एक पहल शुरू की है, जिसमें सोशल मीडिया गतिविधियों के आधार पर छात्रों की पहचान की जाती है और उनके वीज़ा रद्द किए जाते हैं। इस प्रक्रिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग किया जा रहा है, जिससे छात्रों में असुरक्षा और भय का माहौल बन गया है ।
इस कदम के खिलाफ अमेरिका भर में विश्वविद्यालयों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिसमें छात्रों और शिक्षकों ने उच्च शिक्षा में हस्तक्षेप और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले के रूप में देखा है ।इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए शिक्षा प्राप्ति का माहौल अब पहले जैसा सुरक्षित और स्वागतपूर्ण नहीं रहा।