सुप्रीम कोर्ट से झटका: संजीव भट्ट की ज़मानत याचिका और उम्रकैद सस्पेंशन खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने 1990 के हिरासत में मौत के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की जमानत याचिका खारिज कर दी है। यह मामला 1990 में गुजरात के जामनगर जिले में हुई एक हिरासत में मौत से जुड़ा है, जिसमें भट्ट उस समय अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पद पर थे।

उन पर आरोप है कि उन्होंने एक दंगे के बाद 133 लोगों को हिरासत में लिया था, जिनमें से एक व्यक्ति की बाद में मौत हो गई थी। 2019 में जामनगर की एक अदालत ने भट्ट को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। ​

भट्ट ने अपनी सजा को निलंबित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया। इससे पहले, गुजरात हाईकोर्ट ने भी उनकी सजा को निलंबित करने से इनकार कर दिया था। ​

भट्ट को 2011 में सेवा से निलंबित कर दिया गया था और 2015 में उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। वह 2002 के गुजरात दंगों के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ गवाही देने के लिए भी सुर्खियों में आए थे। ​

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद, भट्ट की सजा बरकरार रहेगी और उन्हें जेल में ही रहना होगा।

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