उत्तराखंड हाईकोर्ट ने वैक्सीन वैज्ञानिक डॉ. आकाश यादव को दी गई पत्नी के आत्महत्या के साथ उकसाने के दोषसिद्धि की सजा को निलंबित (stay) कर दिया है, यह निर्णय उन्होंने ‘बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य व राष्ट्रीय हित’ का हवाला देते हुए लिया है। न्यायमूर्ति रविंद्र मैथानी की एकल पीठ ने बताया कि डॉ. यादव की सजा से उन्हें भारतीय इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड (IIL) में वैज्ञानिक कार्य जारी रखने में बाधा आ रही थी, जिसे रोकना सार्वजनिक स्वास्थ्य के हित में नहीं है।
डॉ. यादव IIT‑खड़गपुर से बायोटेक्नोलॉजी में पीएचडी हैं और IIL में वरिष्ठ प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं। उन्हें IPC की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने) के तहत पांच वर्ष के कठोर कारावास और ₹20,000 का जुर्माना हो चुका था। लेकिन अदालत ने उनका अपील विचाराधीन रहने तक निलंबन आदेश लागू किया, जिससे डॉ. यादव अपना शोध कार्य बिना रुकावट जारी रख सकते हैं।
न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के सिद्धांतों का ध्यान रखते हुए—Navjot Singh Sidhu बनाम पंजाब राज्य व Rama Narang बनाम Ramesh Narang—यह स्पष्ट किया कि जहाँ दोषसिद्धि से राष्ट्रहित संबंधी क्षति हो सकती है, वहाँ अपील के दौरान सजा निलंबित की जा सकती है।
इस फैसले से सुनिश्चित हुआ कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण वैज्ञानिक योगदान बाधित न हो, साथ ही यह न्यायपालिका की संवेदनशीलता और राष्ट्रीय हित के प्रति संतुलित दृष्टिकोण का प्रदर्शन भी करता है।