जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला ने सोमवार, 14 जुलाई 2025 को वीडियो साझा किया जिसमें वह श्रीनगर के मजार-ए-शहीदाओं के बाहर पुलिस के साथ शारीरिक संघर्ष करते दिख रहे हैं। उन्होंने इसे X (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा: “यह शारीरिक लड़ाई है जो मुझसे करवाई गई, लेकिन मैं रुकने वाला नहीं था… ये ‘कानून के रक्षक’ हमें फातिहा पढ़ने से रोकना चाहिए—बताएं, किस कानून के तहत?”
दरअसल, रविवार को Martyrs’ Day पर प्रशासन ने उन्हें और अन्य पाकिस्तान विरोध प्रदर्शन के मौसम में मजार तक पहुंचने से रोका। सोमवार को, ओमर नक्शबंदी साहिब श्राइन की दीवार पार कर श्रद्धांजलि देने पहुंचे। वीडियो में साफ दिखता है कि पुलिस ने उन्हें रोका, किंतु उन्होंने कहा—“मैं अवैध कुछ नहीं कर रहा था।”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि “अनचाहे सरकारी तंत्र ने निर्वाचित सरकार को घर में बंद कर दिया।” इस घटना ने सुरक्षा प्रोटोकोल और लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि क्या प्रशासन ने कानून का उल्लंघन किया, या यह राज्य में सत्ता और संवैधानिक अभिव्यक्ति के तरीकों पर बहस शुरू होगा। ओमर अब्दुल्ला की यह बहस “कानून के रक्षक” की भूमिका व सीमाओं को लेकर नई चुनौतियों को सामने लाती है।