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विशेष स्टोरी: कोरोना संकटकाल में दोस्ती भूला अमेरिका, भारत का ‘हालचाल’ लेने में इस बार देर लगा दी

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सरकारें बदल जाती है तो प्रशासन भी बदलता है. काम करने का तरीका और नीतियां भी परिवर्तित होती है. अभी कुछ महीने पहले तक भारत और अमेरिका की ‘दोस्ती’ के विश्व में जयकारे लग रहे थे. पीएम नरेंद्र मोदी और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बढ़ती दोस्ती रूस, चीन और पाकिस्तान समेत कई देशों को ‘हजम’ भी नहीं हो रही थी. डोनाल्ड ट्रंप सरकार में भारत और अमेरिका का ‘व्यापार’ भी खूब परवान चढ़ा.

दोनों देशों की सेनाओं ने कई बार संयुक्त सेना अभ्यास भी किया. लेकिन ‘हमेशा समय एक जैसा नहीं रहता’. डोनाल्ड के राष्ट्रपति पद से विदाई के बाद हालात बदलते चले गए. इसी वर्ष 20 जनवरी को शपथ ग्रहण समारोह के बाद जो बाइडेन राष्ट्रपति और कमला हैरिस उपराष्ट्रपति पद पर आसीन हुई. तब उम्मीद थी कि बाइडेन की सत्ता में भारत और अमेरिका के संबंधों में ‘गर्मजोशी’ बनी रहेगी. लेकिन एक दोस्त (मित्र) की असल परीक्षा संकट की घड़ी में ही ‘परखी’ जाती है.

कई दिनों से भारत कोरोना महमारी के संकटकाल से जूझ रहा है. लेकिन अमेरिका को ‘दोस्ती’ बहुत दिनों बाद याद आई है. जब कई देश कोरोना महामारी से जंग लड़ रहे भारत की मदद करने के लिए आगे आए तब अमेरिका को भारत की ‘सुध’ आई. इसके लिए भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अमेरिकी अपने समकक्ष जैक सुलिवान से बात करनी पड़ी. उसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ‘मदद’ का हाथ बढ़ाया.

अब अमेरिकी सरकार भारत को वैक्सीन निर्माण में इस्तेमाल होने वाले ‘कच्चे माल’ की आपूर्ति करने को तैयार हो गई है. यहां हम आपको बता दें कि अमेरिका भी महामारी से जूझ रहा है. मौजूदा समय में हर रोज संक्रमित मरीजों के आंकड़ों के हिसाब से वहां भी करीब-करीब वही स्थित है, जो भारत की है. घरेलू स्तर पर वैक्सीनेशन तेज करने और वैक्सीन निर्माता कंपनियों को कच्चे माल की आपूर्ति बनाए रखने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने पहले अपने देश को प्राथमिकता दी.

‘इस दौरान वे यह भूल गए कि वैश्विक कूटनीति में अहमियत बनाए रखने के लिए दोस्तों की मदद करना कितना जरूरी होता है’. वहीं हम वर्ष 2020 की बात करें तो जब कोरोना की पहली लहर आई थी उस समय तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से रेमडेसीविर इंजेक्शन समेत कुछ और दवाइयों को भेजने का अनुरोध किया था, पीएम मोदी ने अमेरिका की मदद करने में बिल्कुल भी देर नहीं लगाई थी. लेकिन इस बार अमेरिका सरकार ने भारत की मदद करने बहुत देर लगा दी

ट्रंप के मुकाबले बाइडेन भारत के साथ दोस्ती रखने में अभी तक नहीं दिखाई दिए गंभीर
डोनाल्ड ट्रंप के मुकाबले जो बाइडेन अभी तक भारत के साथ दोस्ती रखने के लिए ‘गंभीर’ दिखाई नहीं दिए हैं. संकट के दौर में ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, रूस, पाकिस्तान, चीन, ईरान और यूरोपीय संंघ के कई देश भारत की मदद करने के लिए आगे आए हैं.

चीन और पाकिस्तान भारत को मदद का ऑफर करने पर देशवासियों ने इन दोनों देशों के प्रति आभार जताया है, लेकिन अमेरिका के देर से जागने पर भारत के लोगों ने पिछली डोनाल्ड ट्रंप सरकार को याद किया. पाकिस्तान ने भी अमेरिका से पहले भारत को मदद देने का प्रस्ताव रखा. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने ट्वीट कर भारत के प्रति एकजुटता दिखाई. वहीं पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने कहा कि उनका देश भारत को वेंटिलेटर, डिजिटल एक्सरे मशीन और पीपीई किट समेत कई जरूरी सामानों को देने के लिए तैयार है.

पाकिस्तानी विपक्षी नेताओं ने भी कोरोना महामारी से पैदा हुए हालात पर संवेदना जताई. कई लोगों ने सोशल मीडिया में अमेरिका को भारत की मदद न करने पर जमकर सुनाई. बता दें कि बाइडेन को पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अपेक्षा भारत की मोदी सरकार से ज्यादा ‘लगाव’ नहीं है. डोनाल्ड ट्रंप से पहले अमेरिका के राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा के कार्यकाल में ‘जो बाइडेन ही नहीं, मौजूदा समय की अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस भी धार्मिक आजादी को लेकर भारत की आलोचना करते रहे हैं’.

जो बाइडेन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने भारत को घातक कोरोना वायरस संकट से निपटने में मदद देने के लिए चिकित्सकीय जीवनरक्षक आपूर्तियां और उपकरण समेत हर तरह का सहयोग देने का आश्वासन दिया है.

भारत में दो माह से जारी जबरदस्त संकटों के बीच पहली बार बाइडेन ने एक ट्वीट में कहा कि जैसे भारत ने अमेरिका को मदद भेजी थी जब वैश्विक महामारी की शुरुआत में हमारे अस्पतालों पर दबाव बहुत बढ़ गया था वैसे ही हम जरूरत के इस वक्त में भारत की मदद के लिए आश्वासन देते हैं.

ऐसे ही उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने ट्वीट किया कि अमेरिका कोविड-19 के चिंताजनक प्रकोप के दौरान अतिरिक्त सहयोग एवं आपूर्तियां भेजने के लिए मोदी सरकार के साथ काम कर रहे हैं. हैरिस ने कहा कि हम भारत के नागरिकों के लिए प्रार्थना भी कर रहे हैं.



शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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