चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने पहलगाम आतंकी हमले को एक बड़ी साजिश बताते हुए पाकिस्तान को सीधे शब्दों में चेतावनी दी. सीडीएस ने कहा, हम जानते हैं जुल्फिकार अली भुट्टो ने भारत के खिलाफ 1000 साल की लड़ाई की बात कही थी. आज जनरल आसिम मुनीर वही सपने देख रहे हैं. पहलगाम अटैक से ठीक पहले उन्होंने कश्मीर को लेकर बेहद जहरीला बयान दिया. पहलगाम में जो हुआ, वो आतंक नहीं बल्कि धार्मिक उन्माद से प्रेरित कत्लेआम था. पीड़ितों को उनके परिवारों और बच्चों के सामने गोली मार दी गई, सिर में गोली मारी गई. यह सभ्य समाज के लिए अस्वीकार्य है.
सीडीएस ने कहा, भारत ने आतंक को बर्दाश्त न करने की एक बॉर्डर लाइन खींच दी है. “पानी और खून साथ नहीं बह सकते” की नीति पर भारत चल पड़ा है. ऑपरेशन सिंदूर एक शानदार अभियान था. यह एक “नॉन-कॉन्टैक्ट वॉरफेयर” था, जो पारंपरिक युद्ध से बिल्कुल अलग था. लाइन ऑफ कंट्रोल पर कुछ और हो रहा था, वहीं नूर खान एयरबेस के भीतर तक हम पहुंचे. यह एक साथ दो अलग-अलग स्तरों पर चलाया गया ऑपरेशन था. हम दुश्मन के एयरबेस तक पहुंचे, सटीकता से प्रहार किया और कोई नागरिक हताहत नहीं हुआ. यह हमारी वायुसेना की क्षमता और रणनीति की बड़ी जीत थी.
जनरल अनिल चौहान ने बताया कि पाकिस्तान ने ऑपरेशन के बाद खुद भारत से संपर्क कर डि-एस्केलेशन की बात की. इसका अर्थ साफ है कि भारत की नई सैन्य नीति ने पाकिस्तान को गहराई से झकझोरा है. उन्होंने कहा, हमारे ऑपरेशन में कोई कोलेट्रल डैमेज नहीं हुआ. हम जानते हैं 100% सटीक होना संभव नहीं, लेकिन हमने बहुत सावधानी से हमला किया. CDS चौहान ने कहा, भारत अब बदला लेने के लिए नहीं, बल्कि अपनी सहनशीलता की सीमा तय करने के लिए जवाब देता है. ऑपरेशन सिंदूर उसी सोच का हिस्सा था. पाकिस्तान प्रायोजित आतंक अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि भारत अब यह स्वीकार नहीं करेगा कि पाकिस्तान भारत को आतंकवाद के जरिए बंधक बनाए रखे. भारत ने यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि आतंक का हर जवाब अब रणनीतिक और निर्णायक होगा.
जुल्फिकार अली भुट्टो ने 1965 और 1971 के युद्धों के बाद भारत के खिलाफ एक बेहद उकसाऊ और आक्रामक बयान दिया था, जो आज भी भारत-पाक संबंधों में चर्चा का विषय बना रहता है. उन्होंने कहा था, हम भारत से हज़ार साल तक लड़ेंगे. यह बयान उन्होंने 1971 में पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में दिया था, जब बांग्लादेश युद्ध के बाद पाकिस्तान की हार और विभाजन हो चुका था. भुट्टो उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने की ओर अग्रसर थे और राष्ट्रवाद के नाम पर उग्र तेवर अपना रहे थे. इस भाषण में उन्होंने भारत के खिलाफ लंबे संघर्ष की बात की और कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बताने की ज़िद दोहराई. उनका यह “1000 साल की जंग” वाला बयान पाकिस्तान की विदेश नीति और सैन्य रणनीति में गहराई तक उतर गया. यह बयान प्रतीक बन गया पाकिस्तान की उस सोच का, जिसमें भारत के खिलाफ लगातार ‘छद्म युद्ध’ (proxy war) चलाना एक रणनीति मानी गई. भारत में इस बयान को अक्सर आतंकवाद और घुसपैठ के संदर्भ में याद किया जाता है और यह माना जाता है कि पाकिस्तान की सेना व आईएसआई अब भी उसी सोच को ढोते हैं.