UNO में जैन संत महर्षि योगभूषण ने कहा – शाकाहार, जीव दया, अहिंसा के सिद्धांत से ही प्रकर्ति का बचना संभव

दिल्ली: जैन दर्शन की अवधारणाएं साधारण नहीं हैं. अपितु पूरा जैन दर्शन अपने आप में एक अदृश्य विज्ञान को समेटे हुये है. विज्ञान बहुत सी चीजों को लंबे समय बाद महसूस करता है अथवा मानव जीवन के लिए खतरा होने पर उनके समाधान की दिशा में काम करता है.

लेकिन जैन दर्शन के शास्त्रों में हजारों वर्ष पूर्व जो भी मानव जीवन के लिए आवश्यक हुआ उसको सिद्धांतों अनुसार लिखा जा चुका है. जैन दर्शन में प्रकृति के संरक्षण के लिए सूक्ष्मतम व्याख्या की गई है. इसको सरल भाषा में सिर्फ शाकाहारी बने, जीवों पर दया करें, अहिंसा के सिद्धांत को जीवन में प्रतिपादित करें. इससे समझा जा सकता है.

उक्त उद्वगार दिगंबर जैन समप्रदाय के मंत्र महर्षि योगभूषण ने यूनाइटेड नेशन के लोधी रोड दिल्ली स्थिति कार्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में व्यक्त किये. विश्व के 193 देशों से मान्यता प्राप्त एक मात्र संस्था यूनाइटेड नेशन ने उनको एन्वारमेंट कार्यक्रम यूनाइटेड रिलीजन इनटेटिव फेथ फॉर अर्थ काउंसलर मीटिंग के लिए आमंत्रित किया था.

इस कार्यक्रम का उद्देश्य धार्मिक समाजिक संस्थाओं द्वारा पर्यावारण, क्लाइमेट चेंज आदि विषय पर किये जा रहे कार्यों पर चर्चा एवं इस दिशा में और क्या करने की जरूरत है इस पर विचारों के संप्रेषण के माध्यम से उपलब्ध तत्वों को संग्रहित करना था.

यहां मौजूद विभिन्न संप्रदाय के संतों के विचारों पर संयुक्त राष्ट्र संघ अंतराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा कर पर्यावारण संरक्षा एवं संवर्धन की रणनीति पर काम करेगा.

कार्यक्रम में संस्थापक धर्मयोग फाउंडेशन मंत्र महर्षि योगभूषण ने प्रकृति की सुरक्षा के लिए जल- जंगल – जमीन और जानवर की रक्षा करने की बात की.

उन्होंने प्राकृतिक असंतुलन को मानव जीवन के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताया. उन्होंने कहा कि मानव जीवन मूल्यवान है इसके लिए जैन दर्शन के वैज्ञानिक सूत्रों पर काम करना होगा.

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