लद्दाख सहित वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जारी गतिरोध के बीच भारत ने चीन को एक और बड़ा झटका देने की तरफ कदम बढ़ा दिया है. देश में चीन की गतिविधियां सीमित करने के लिए सरकार ने बीजिंग के लिए जारी होने वाले वीजा की अतिरिक्त जांच एवं उसके स्थानीय विश्वविद्यालयों के साथ संपर्कों की नए सिरे से समीक्षा करने का आदेश दिया है. विदेश मंत्रालय को कहा गया है कि वह चीन के कारोबारियों, शिक्षाविदों, उद्यमियों और थिंक टैंक्स को वीजा जारी करने से पहले उसकी सुरक्षा मंजूरी की जरूरत होगी.
इस कदम से चीन की गतिविधियां कम होंगी
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक नाम उजागर न करने की शर्त पर अधिकारियों ने बताया कि इसी तरह के नियम पाकिस्तान के साथ भी लागू हैं. एक अधिकारी ने कहा कि इस फैसले के बाद भारतीय विश्वविद्यालयों का चीनी संस्थानों के साथ होने वाले करार की गतिविधियों में उल्लेखनीय कमी आनी तय है. अधिकारियों का कहना है कि सरकार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय एवं अन्य संस्थानों के चीन के आधिकारिक भाषा प्रशिक्षण कार्यालय जिसे हनबान नाम से जाना जाता है, उसके साथ हुए 54 सहमति पत्रों की समीक्षा कर रही है.
चीन के संस्थानों के साथ करार खत्म हो सकते हैं
अधिकारियों का कहना है कि मंडारिन भाषा को छोड़कर चीन के संस्थानों के साथ करारों को खत्म किया जा सकता है. अधिकारियों के मुताबिक इन संस्थानों का इस्तेमाल थिंक टैंक्स, नीतियों का निर्माण करने वालों, राजनीतिक दलों, कॉरपोरेट एवं शिक्षाविदों को प्रभावित करने के लिए किया जाता है. हालांकि, इस घटनाक्रम पर विदेश मंत्रालय की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है.
गलवान घाटी की घटना के बाद रिश्तों में आई तल्खी
बता दें कि गत 14 जून को गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद भारत और चीन के संबंधों में तल्खी आ गई है. लद्दाख सहित पूरे एलएसी पर तनाव का माहौल है. भारत ने इस घटना के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराया. विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया कि चीन की तरफ से एलएसी पर एकतरफा बदलाव की कोशिश की गई. पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी से चीन के सैनिकों की वापसी हुई है लेकिन पैंगोंग लेक और फिंगर क्षेत्र से चीनी सैनिक पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है.
सैन्य स्तर पर बातचीत से नहीं निकला है हल
इन इलाकों में चीन की मंशा को देखते हुए भारत ने अपने सैनिकों की तादाद बढ़ा दी है. भारत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह अपनी क्षेत्रीय अखंडता एवं संप्रभुता के साथ कोई समझौता नहीं करेगा. पीएम मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जुलाई में लेह का दौरा कर चीन को स्पष्ट संदेश दिया कि विस्तारवादी मानसिकता का दौर खत्म हो चुका है. विस्तारवादी ताकतें या तो खुद खत्म हो गईं या उन्हें समाप्त होने के लिए बाध्य किया गया. सीमा पर शांति और सौहार्द कायम करने के लिए दोनों देशों के बीच सैन्य कमांडर स्तर पर पांच दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन इस विवाद का अभी हल नहीं निकल सका है.
चीन को और झटका देने के लिए भारत ने उठाया ये बड़ा कदम
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