अब ‘गौरा देवी’नाम से जाना जाएगा ऋषिकेश का तहसील चौक, आइए जानें कौन थीं यह वीरांगना

आज उत्तराखंड की धार्मिक नगरी ऋषिकेश उस समय जयकारों से गूंज उठी जब देवभूमि की महान वीरांगना ‘गौरा देवी के नाम पर तहसील चौक का नाम रखा गया’.‌ यानी अब ऋषिकेश का तहसील चौक गौरा देवी नाम से जाना जाएगा. शुक्रवार को महापौर अनीता ममगाई ने इस चौक का लोकार्पण किया.

तहसील, प्रगति विहार और ऋषिकेश-श्यामपुर बाईपास मार्ग से जुड़े तहसील चौक पर नगर निगम ने ‘चिपको आंदोलन’ की प्रणेता गौरा देवी के नाम से चौक का निर्माण कराया है. आइए जानते हैं चिपको आंदोलन और देवभूमि की महान वीरांगना गौरा देवी के बारे में.

इसके लिए हम आपको 50 वर्ष पहले लिए चलते हैं. 1970 के दशक में देवभूमि के पेड़ों को कटने से बचाने के लिए एक आंदोलन’ की शुरुआत हुई थी. धीरे-धीरे इसने व्यापक रूप ले लिया. यह पूरे देश भर में ‘चिपको आंदोलन’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ. उस दौर में लोग पेड़ों को कटने से बचाने के लिए चिपक जाते थे.

इस आंदोलन की प्रणेता गौरा देवी को माना जाता है. गौरा देवी का जन्म 1925 में उत्तराखंड के लाता गांव के मरछिया परिवार में हुआ था. गौरा देवी कभी स्कूल नहीं गईं लेकिन इन्हें प्राचीन वेद, पुराण, रामायण, भगवतगीता, महाभारत तथा ऋषि-मुनियों की सारी जानकारी थी.

इनकी शादी 12 वर्ष की उम्र में मेहरबान सिंह के साथ कर दी गई थी, जो कि पास के गांव रैंणी के निवासी थे. हालांकि शादी के 10 साल के बाद मेहरबान सिंह की मौत हो गई और गौरा देवी को अपने बच्चों के लालन-पालन में काफी दिक्कतें आईं.

फिर भी उन्होंने उनका अच्छे से पालन-पोषण किया और अपने बेटे चंद्र सिंह को स्वालंबी बनाया. उन दिनों भारत-तिब्बत व्यापार हुआ करता था, जिसके जरिये गौरा देवी अपनी आजीविका चलाती थीं.

1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद यह व्यापार बंद हो गया तो गौरा देवी केेे बेटे चंद्र सिंह ठेकेदारी, ऊनी कारोबार और मजदूरी के जरिये परिवार का खर्च चलाने लगे. इस बीच अलकनंदा नदी में 1970 में प्रलयंकारी बाढ़ आई. इस बाढ़ के बाद यहां के लोगों में बाढ़ के कारण और इसके उपाय के प्रति जागरूकता बढ़ी.

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