गुजरात के अहमदाबाद में 12 जून 2025 को हुए एयर इंडिया का विमान भयानक हादसे का शिकार हो गया था. यह दुर्घटना भारत के विमानन इतिहास की सबसे घातक घटनाओं में से एक मानी जा रही है, जिसमें 260 से अधिक लोगों की जान चली गई. घटना के बाद देशभर में शोक और गुस्से की लहर दौड़ गई. इस हादसे की जांच अभी भी जारी है, लेकिन जांच की प्रारंभिक रिपोर्ट पर अब सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर सवाल उठाए हैं.
इस मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसियों की ओर से जारी प्रारंभिक रिपोर्ट पर नाराजगी जताई. कोर्ट ने विशेष तौर पर उस टिप्पणी को लेकर आपत्ति जताई जिसमें पायलट को हादसे का जिम्मेदार बताया गया था. जस्टिस संजय कांत ने साफ कहा कि पायलट पर एक पंक्ति में दोष डालना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी गंभीर जांच में निष्पक्षता और गोपनीयता अनिवार्य है.
जनहित याचिका दायर करने वाले पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा कि जांच टीम में शामिल 5 सदस्यों में से 3 डीजीसीए (डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन) के हैं, जबकि डीजीसीए की भूमिका खुद इस हादसे में जांच के दायरे में है. उन्होंने इसे ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट’ बताया और स्वतंत्र जांच की मांग की. उन्होंने यह भी बताया कि हादसे को 100 दिन से ज्यादा हो गए हैं लेकिन अब तक कोई ठोस रिपोर्ट सामने नहीं आई.
सुनवाई के दौरान भूषण ने फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) की जानकारी सार्वजनिक करने की मांग की, जबकि कोर्ट ने कहा कि जांच पूरी होने से पहले जानकारी साझा करने से अफवाहें फैल सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की निष्पक्ष और विशेषज्ञों की निगरानी में जांच का आदेश दिया है और डीजीसीए, एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
एयर इंडिया प्लेन क्रैश न केवल एक तकनीकी विफलता का मामला है, बल्कि यह संस्थागत जवाबदेही और पारदर्शिता की भी परीक्षा बन चुका है. सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से उम्मीद है कि इस हादसे की असली वजह सामने आएगी और पीड़ित परिवारों को न्याय मिलेगा.