दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को हटाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट से अपना फैसला सुरक्षित रख दिया है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 8 हफ्तों के भीतर दिल्ली एनसीआर की सड़कों से आवारा कुत्ते हटाने का निर्देश दिया था. इसके बाद तमाम डॉग लवर्स और पशु प्रेमियों ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर नाराजगी जताई और इस वापस लेने की मांग की. उसके बाद बुधवार को भी इस मामले में सुनवाई हुई. तब सीजेआई जस्टिस बीआर गवई ने इस मामले को देखने की बात कही. उसके बाद गुरुवार को भी इस मामले में सुनवाई हुई.
गुरुवार को मामले की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, इस मुद्दे का समाधान किया जाना चाहिए, न कि इस पर विवाद होना चाहिए. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एससी से कहा कि, कोई भी जानवरों से नफरत नहीं करता और हम भी इसका हल चाहते हैं.
वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सभी कुत्तों को शेल्टर होम भेजने के आदेश पर रोक की मांग की. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि, “मैंने पहली बार सॉलिसिटर जनरल को यह कहते सुना है कि कानून तो हैं, लेकिन उनका पालन ज़रूरी नहीं है. एबीसी नियम मौजूद हैं और संसदीय कानून भी हैं, लेकिन इन पर विचार ही नहीं होना चाहिए. सवाल यह है कि इनका पालन कौन करेगा. सवाल यह है कि क्या नगर निगम ने आश्रय गृह बनाए हैं.”
सिब्बल ने आगे कहा कि, “क्या कुत्तों की नसबंदी की गई है? पैसा गबन किया गया है. कोई आश्रय गृह नहीं है. ऐसे आदेश स्वतः संज्ञान से दिए जाते हैं. बिना किसी सूचना के. अब कुत्तों को उठा लिया जाता है. आप कहते हैं कि एक बार नसबंदी हो जाने के बाद उन्हें मत छोड़ो. इस पर गहराई से बहस होनी चाहिए. स्वतः संज्ञान आदेश पर रोक लगाई जाए.”
सिब्बल की इस दलील पर जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि, हमें आदेश का वो हिस्सा दिखाइए जो आपको आपत्तिजनक लग रहा है. हम पूरा दिन इस पर नहीं लगा सकते. वो हमें दिखाइए.
वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी एससी में अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि, एक अल्पसंख्यक वर्ग बहुत ज़ोर से बोलता है और बहुसंख्यक चुपचाप पीड़ित है. मैंने लोगों को मांस आदि खाते हुए वीडियो पोस्ट करते और फिर खुद को पशु प्रेमी बताते देखा है. उन्होंने आगे कहा कि बच्चे मर रहे हैं. मैं मिस डेव को तस्वीरें दिखाऊंगा. नसबंदी से रेबीज़ नहीं रुकता. अगर आप टीकाकरण भी कर दें, तो भी बच्चों का अंग-भंग होना नहीं रुकता. उन्होंने कहा कि, सालाना 37 लाख, यानी 10 हज़ार प्रतिदिन. ये कुत्तों के काटने से हुई मौतें हैं. रेबीज़ से हुई मौतें. इसी साल 305 मौतें हुई हैं विश्व स्वास्थ्य संगठन के मॉडल के अनुसार यह संख्या कहीं ज़्यादा है.
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कोई भी जानवरों से नफ़रत नहीं करता. यह मेरा व्यक्तिगत मत है, सरकार का रुख नहीं है. उन्होंने कहा कि कुत्तों के बच्चों पर हमले के वीडियो भयावह हैं, आप इन्हें देख नहीं पाएंगे.
वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता कपित सिब्बल ने कहा कि, बिना दूसरे पक्ष को सुने कोर्ट इस तरह का एकतरफ़ा आदेश पास नहीं कर सकता. उन्होंने कहा कि क़ानून और एनमिल बर्थ कंट्रोल के नियमों पर पालन ज़रूरी है. एजेंसियों की जिम्मेदारी बनती है कि वो इस पर अमल करें.
वहीं सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि, कोई भी स्ट्रीट्स डॉग्स को मारने की बात नहीं कर रहा. सिर्फ उन्हें शहर से हटाने की बात हो रही है. उन्हें शेल्टर होम में रखने की बात हो रही है.
कपिल सिब्बल ने कहा कि, स्ट्रीट डॉग्स के नियंत्रण के लिए नियम हैं, कानून हैं, लेकिन इस पर ध्यान ही नहीं दिया जाता. सवाल यह है कि इसका पालन कौन करेगा? क्या इससे पहले नगर निगम ने शेल्टर बनाए हैं? क्या कुत्तों की नसबंदी की गई है? आवंटित बजट उड़ा दिया जाता है.
सिब्बल ने सुप्रीमकोर्ट में कहा कि, सुप्रीम कोर्ट के एकतरफा आदेश के बाद कुत्तों को उठा लिया जा रहा है. आदेश में कहा गया है कि नसबंदी हो जाने के बाद भी उन्हें न छोड़ा जाए.
इस पर बेंच ने पूछा कि क्या आदेश दूसरे पक्ष को सुने बिना पास किया गया है.
इस पर सिब्बल ने कहा कि, बिल्कुल ऐसा ही हुआ है. उन्होंने कहा कि, कल शाम को आदेश सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर आया है और प्रशासन ने आदेश आने से पहले ही कुत्तों को सड़कों से उठाना शुरू कर दिया है. इन्हें मार दिया जाएगा. सिब्बल के साथ अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश में जारी दिशानिर्देश पर रोक की मांग की.