हाल ही में एक महत्वपूर्ण मामले में कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि भारत में मुक्ति भाषण (Free Speech) की आज़ादी का मतलब यह नहीं है कि किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाई जाए। यह आदेश शर्मिष्ठा पनोली से जुड़ा हुआ है, जिन पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लगा था।
कोर्ट ने कहा कि संविधान ने सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है, लेकिन इसके साथ ही यह जिम्मेदारी भी आती है कि यह स्वतंत्रता दूसरों के अधिकारों और धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए इस्तेमाल की जाए। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति अपनी बात कहता है, लेकिन वह किसी धर्म या धार्मिक प्रतीकों का अपमान करता है, तो यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा लांघना माना जाएगा।
शर्मिष्ठा पनोली के मामले में कोर्ट ने उनकी टिप्पणियों को धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाने वाला पाया और उन्हें इस पर संयम बरतने की चेतावनी दी। कोर्ट ने कहा कि किसी भी तरह की अभिव्यक्ति तभी स्वीकार्य होगी जब वह समाज में शांति और सौहार्द बनाए रखने वाली हो।
यह फैसला धार्मिक सद्भाव बनाए रखने और समाज में सामंजस्य बनाए रखने के लिए एक अहम कदम माना जा रहा है। अदालत ने यह भी कहा कि भारत में किसी भी प्रकार की धार्मिक भावनाओं की बेअदबी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।