सुप्रीम कोर्ट की पाँच न्यायाधीशीय संविधान पीठ ने मंगलवार को राष्ट्रपति द्वारा संदर्भित 14 संवैधानिक प्रश्नों पर विचार-विमर्श करते हुए महत्वपूर्ण सवाल उठाया—“ऐसा क्या संवैधानिक उपाय है, जब राज्यपाल वर्षों तक विधानसभा से पास हुए बिलों को अनिश्चितकाल तक लटकाए रखते हैं?”
अटॉर्नी जनरल (एजी) आर. वेंकटरामण ने इस पर कहा कि—even ऐसी गंभीर परिस्थितियों में—सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल के कर्तव्यों को स्वयं नहीं निभा सकता और “deemed assent” घोषित नहीं कर सकता। यह कदम संवैधानिक सीमा का उल्लंघन होगा । कोर्ट ने यह भी अध्ययन किया कि तमिलनाडु में एक न्यायाधीशीय पीठ ने वर्ष 2020 से लंबित बिलों के “deemed assent” की घोषणा की थी, जो “egregious situation” के आधार पर संभव हुआ था ।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक कोई आदेश पारित नहीं किया है और मामले की सुनवाई जारी है, लेकिन इस विषय पर संवैधानिक सीमाओं, राज्यपाल और राष्ट्रपति के अधिकारों तथा न्यायपालिका द्वारा हस्तक्षेप की स्वीकृति पर गहन विचार-विमर्श हो रहा है ।