उत्तराखंड पंचायत चुनाव में मतदाता सूची का घोटाला? बड़ा सवाल – जब नियम नहीं, तो शहरी मतदाता गांव की सूची में कैसे शामिल हुए

उत्तराखंड में पंचायत चुनाव को लेकर मतदाता सूची में गड़बड़ी के आरोप सामने आए हैं। सोशल एक्टिविस्ट महिपाल सिंह के PIL के आधार पर हाईकोर्ट ने देहरादून और अन्य जिलों की सूची में शहरी मतदाताओं के ग्रामीण पंचायतों की सूची में शामिल होने पर सवाल उठाया है। उदाहरण के तौर पर सतेली गाँव की सूची में सिर्फ दो परिवार के रहने के बावजूद 122 नाम दर्ज पाए गए—जिसमें कई शहरी और प्रवासी मतदाता भी शामिल थे

हाईकोर्ट ने डुप्लीकेट नाम और असंबद्ध वोटरों को हटाने के लिए डीएम द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति से छह हफ्तों में रिपोर्ट तलब की है । यह आदेश पंचायत चुनावों से पहले पारदर्शिता सुनिश्चित करने की कवायद का हिस्सा है।

राज्य में शहरी मतदाताओं के ग्रामीण सूचियों में कैसे शामिल होने का प्रश्न पठनीय रूप से चिंता बढ़ा रहा है। जब नियम स्पष्ट रूप से ग्रामीण और शहरी मतदाताओं को अलग रखता है, तो ऐसी गड़बड़ी से चुनाव की निष्पक्षता और लोकतांत्रिक अधिकारों की महत्वाकांक्षा पर प्रश्न उठता है। इस मुद्दे ने राज्य चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली और प्रशासनिक कार्यशैली पर भी प्रकाश डाला है।

उल्लेखनीय है कि HC ने पहले भी रिजर्वेशन रोटेशन और निर्वाचन नियमों में अनियमितताओं के मामले पर चुनाव प्रक्रिया को रोककर सुधार के निर्देश दिए थे । अब मतदाता सूची में व्यापक सत्यापन से स्पष्टता आने की उम्मीद है।

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