बांग्लादेश में सत्ता की लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर पहुंचती दिख रही है. सूत्रों के हवाले से जानकारी सामने आ रही है कि बांग्लादेश सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज-ज़मां अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस को सत्ता से हटाने के लिए हर विकल्प पर विचार कर रहे हैं. सेना की उच्च स्तरीय बैठकों में सक्रियता और मीडिया बयानों से इस बात के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि सेना अब और इंतज़ार के मूड में नहीं है.
सूत्रों के मुताबिक, ज़मां संविधान में मौजूद अस्पष्टताओं का उपयोग करते हुए अंतरिम सरकार की वैधता को चुनौती देने की योजना पर काम कर रहे है. संविधान के अनुसार, किसी सरकार के भंग होने के 90 दिनों के भीतर चुनाव करवाना अनिवार्य है, लेकिन यूनुस सरकार इस सीमा को पार कर रही है, जिससे उसका कानूनी आधार कमजोर होता जा रहा है.
सूत्र बताते हैं कि जनरल ज़मां शेख हसीना और खालिदा जिया जैसे बड़े राजनीतिक दलों को एक साथ लाकर नए सिरे से चुनाव कराने के पक्षधर हैं. अगर यह योजना सफल नहीं होती, तो वे एक ‘सॉफ्ट टेकओवर’ की रणनीति के तहत खुद स्थिति को नियंत्रित करने का विकल्प खुला रख रहे हैं. इसका मकसद बांग्लादेश की राजनीतिक दिशा को स्थिर करना होगा.
सैन्य सूत्रों का मानना है कि चुनावों में देरी संविधान के उल्लंघन के समान है. यही वजह है कि राष्ट्रपति मोहम्मद शाहाबुद्दीन पर अनुच्छेद 58 के तहत आपातकाल लागू करने का दबाव डाला जा रहा है. यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को तब विशेष शक्तियां देता है जब संवैधानिक तंत्र असफल हो जाए. इसी आधार पर यूनुस सरकार को भंग कर चुनावों की प्रक्रिया को तेज़ किया जा सकता है.
जानकार सूत्रों के अनुसार, साल 2007 में भी सेना ने ऐसी ही संवैधानिक धुंध को इस्तेमाल कर एक अंतरिम सरकार का गठन किया था. इस बार भी जनरल ज़मां उसी रास्ते पर चलते दिख रहे हैं. उन्होंने नौसेना और वायुसेना प्रमुखों का समर्थन हासिल कर लिया है और पूरे सैन्य ढांचे को एकजुट रखने की कोशिश में जुटे हैं.
सेना प्रमुख यूनुस की नीतियों को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बता रहे हैं सखासकर म्यांमार के रखाइन प्रांत में प्रस्तावित कॉरिडोर और विदेशी दखलंदाज़ी को लेकर. ज़मां इसे देश की संप्रभुता के खिलाफ मानते हैं और इसके आधार पर आम जनता में भी यूनुस सरकार के खिलाफ माहौल तैयार कर रहे हैं.
माना जा रहा है कि अगर स्थितियां ज़मां के पक्ष में जाती हैं, तो वे जल्द ही देश में आम चुनावों की घोषणा कर सकते हैं. इससे पहले राष्ट्रपति के ज़रिए आपातकाल और अंतरिम सरकार की बर्खास्तगी का रास्ता भी तैयार किया जा सकता है.