हरिद्वार (ज्वालापुर) के बहुचर्चित दोहरे हत्याकांड में दस साल बाद आखिरकार न्याय की पराकाष्ठा देखने को मिली। 3 अक्टूबर 2015 की दर्दनाक रात लगभग साढ़े नौ बजे, पंकज, कार्तिक और उनके साथी रोहित उर्फ़ बंटी पैदल शास्त्री नगर मार्केट की ओर जा रहे थे।
इसी दौरान, आरोपी आशीष मेहता, उनके भाई चिन्नू मेहता, पिता महेश मेहता और अन्य साथियों ने पुरानी रंजिश का हवाला देते हुए हमला बोल दिया। चाकू, खुखरी समेत धारदार हथियारों से दोनों दोस्तों—पंकज और कार्तिक—को उस स्थान पर ही बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया। रोहित (बंटी) गंभीर रूप से घायल हो गया और बाद में इलाज के लिए रेफर किया गया।
घटना की FIR उसी रात पीड़ित पंकज के पिता द्वारा ज्वालापुर कोतवाली में दर्ज की गई। पुलिस ने जांच के बाद आशीष मेहता, महेश मेहता और अरुण के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया। मुकदमे की सुनवाई के दौरान आरोपी महेश मेहता की मृत्यु हो जाने के कारण उनके खिलाफ कार्रवाई समाप्त कर दी गई, जबकि एक और आरोपी, जो नाबालिग था, के मामले को किशोर न्याय बोर्ड में भेज दिया गया ।
आखिरकार, आज जिला एवं सत्र न्यायाधीश नरेंद्र दत्त की अदालत ने आशीष मेहता और अरुण को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा और साढ़े पाँच लाख रुपये जुर्माना सुनाया। कोर्ट ने हत्या, जानलेवा हमला और गाली-गलौज जैसे आरोपों पर कुल सज़ा निर्धारित की—हत्या के लिए उम्रकैद और जुर्माना, जानलेवा हमला के लिए 10 वर्ष कैद व जुर्माना, तथा गाली-गलौज के लिए अतिरिक्त एक माह कैद और जुर्माना ।
इस फैसले से पीड़ित परिवार को दस साल लंबी न्यायिक प्रतीक्षा का अंत करने वाला न्याय मिला है, जो उम्मीद और राहत का संदेश है—कि चाहे कितना भी समय क्यों न लगा हो, अंततः सच्चाई और इंसाफ का बुलंद निशान अदालत पहुंच ही जाता है।