बंगाल और त्रिपुरा में वापसी मुश्किल, सीपीएम की रणनीति केरल बचाने पर केंद्रित

​भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) [सीपीएम] का पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में राजनीतिक प्रभाव लगातार घट रहा है। पश्चिम बंगाल में, 2006 के विधानसभा चुनावों में सीपीएम ने 294 में से 176 सीटें जीती थीं, लेकिन 2021 तक वह शून्य पर आ गई, और वोट शेयर भी 37.13% से घटकर 4.71% रह गया। ​

त्रिपुरा में, जहां सीपीएम ने 1993 से 2018 तक शासन किया, 2018 के विधानसभा चुनावों में उसे 60 में से 16 सीटें मिलीं, और 2023 में यह संख्या घटकर 11 रह गई। वोट शेयर भी 48.11% (2013) से घटकर 24.62% (2023) हो गया। इन राज्यों में कमजोर होती स्थिति को देखते हुए, सीपीएम अब केरल में अपनी पकड़ मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। केरल में, पार्टी ने 2006 में 61 सीटें जीती थीं, जो 2021 में बढ़कर 62 हो गईं, दर्शाता है कि वहां उसका प्रभाव स्थिर है। ​

इसके अलावा, सीपीएम ने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की समन्वय समिति से दूरी बना ली है, विशेषकर पश्चिम बंगाल और केरल में, जहां कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के साथ उसके मतभेद हैं। ​इन परिस्थितियों में, सीपीएम का मुख्य उद्देश्य अब केरल में अपनी सत्ता और समर्थन को बनाए रखना है, जबकि पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में पुनरुत्थान की संभावनाएं धूमिल होती जा रही हैं।

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