देश

समझिए पीके-कांग्रेस की मुलाकात के सियासी मायने…

राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर-राहुल गांधी

मंगलवार को चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी से मुलाकाता की तो चर्चा का बाजार गर्म हो गया. यह कहा गया कि पंजाब के मुद्दे पर कोई बेहतर फैसले के लिए प्रशांत किशोर की सलाह ली जा रही है और इस बात पर एक तरह से हरीश रावत के उस बयान ने मुहर लगा दी जिसमें कहा गया कि बहुत जल्द ही पंजाब का मसला सुलझ जाएगा.

यहां ध्यान देने वाली बात है कि मंगलवार को ही नवजोत सिंह सिद्धू ने आप की प्रशंसा कर राजनीति गर्मी को और बढ़ा दिया था. इन सबके बीच मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रशांत किशोर- राहुल और प्रियंका गांधी के साथ बातचीत में सिर्फ पंजाब केंद्र नहीं था, बल्कि 2024 के आम चुनावों पर भी चर्चा की गई.

प्रशांत किशोर इससे पहले एनसपी के मुखिया शरद पवार से तीन दौर की बातचीत कर चुके हैं, ये बात अलग है कि उनकी तरफ से बयान आया कि मुलाकात सियासी नहीं है. लेकिन जानकार कहते हैं कि अगर सियासी चेहरे आपस में मिलें और किसी तरह की सियासी बातचीत ना हो यह कैसे संभव है.

पश्चिम बंगाल में जिस तरह से बीजेपी की धुआंधार प्रचार के बाद टीएमसी को ऐतिहासिक विजय मिली उसके बाद प्रशांत किशोर के लिए सुनने से ज्यादा कहने के लिए था. अब अगर बात कांग्रेस शासित राज्यों की करें तो राजस्थान में आए दिन तकरार होती रहती है, छत्तीसगढ़ में भी दबी जुबां खिलाफत की खबर आती है. लेकिन इन दोनों राज्यों में चुनाव नहीं होने हैं लिहाजा कांग्रेस आलाकमान के सामने उतनी परेशानी नहीं हो सकती है. लेकिन जिस तरह से पंजाब में चुनाव सिर पर है उसके बाद किसी तरह की आंतरिक गुटबाजी पार्टी के भविष्य पर सवालिया निशान खड़ा करती है.

जानकार कहते हैं कि किसी भी पार्टी में गुटबाजी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. दरअसल हर पार्टियों में छत्रप होते हैं जिनके पास जनाधार होता है और वो जनाधार ही उन्हें बगावती मुद्रा अख्तियार करने के लिए प्रेरित करता है. बात अगर पंजाब की करें तो कैप्टन अमरिंदर सिंह का अपना जनाधार है तो नवजोत सिंह सिद्धू का दावा है कि 2017 में पार्टी के सत्ता में आने के पीछे उनकी मेहनत भी थी.

ऐसे में कांग्रेस चाहती है कि सुलह का ऐसा रास्ता निकल कर सामने आए जिसके नकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव आम चुनाव 2024 में ना पड़े और इसके लिए जरूरी है कि रणनीति इस तरह बने जो कांग्रेस को नरेंद्र मोदी के खिलाफ विकल्प के तौर पर पेश कर सके.

Exit mobile version