नदियों के किनारे पनप रहा अतिक्रमण बनेगा तबाही का कारण, जाते-जाते भी नए रंग में दिखेगा मानसून

प्रदेश में नदियों के किनारे पनप रहा अवैध अतिक्रमण फिर से बड़ी तबाही का कारण बन सकता है। विशेषज्ञों की मानें तो वर्ष 2013 की आपदा के बाद एक दशक बीत जाने पर भी हमने कोई सबक नहीं लिया है। इस बार मानसून ने ठीक वैसा ही रंग हिमाचल में दिखाया है, जो हिमालयी राज्यों के लिए नए खतरे का संकेत है।

उत्तराखंड में 2015 से अब तक 7,750 अत्यधिक वर्षा और बादल फटने की घटनाएं दर्ज की गई हैं। मौसम विज्ञानी व आईएमडी के पूर्व उपमहानिदेशक आनंद शर्मा के अनुसार भले ही राज्य के लिए भूस्खलन और अचानक बाढ़ जैसी मौसम की घटनाएं असामान्य नहीं हैं, लेकिन तबाही के लिए नदी के किनारे अनधिकृत निर्माण को दोषी ठहराया गया है।

दिसंबर 2017 के एक आदेश में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने निर्देश दिया था कि पर्वतीय इलाकों में गंगा के किनारे से 50 मीटर के भीतर आने वाले क्षेत्र में किसी भी निर्माण की अनुमति नहीं दी जाएगी और न ही कोई अन्य गतिविधि की जाएगी। यहां 50 मीटर से अधिक और 100 मीटर तक के इलाके को नियामक क्षेत्र के रूप में माना जाएगा। मैदानी क्षेत्र में जहां नदी की चौड़ाई 70 मीटर से अधिक है, उस स्थिति में नदी के किनारे से 100 मीटर का क्षेत्र निषेधात्मक क्षेत्र के रूप में माना जाएगा।

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