भारत सरकार की ₹72,000 करोड़ की ग्रेट निकोबार विकास परियोजना, जिसे “भारत का हॉन्गकॉन्ग” बनाने की योजना के रूप में प्रस्तुत किया गया है, अब विवादों के घेरे में है। यह परियोजना अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के ग्रेट निकोबार द्वीप पर प्रस्तावित है और इसमें एक अंतरराष्ट्रीय कंटेनर ट्रांस-शिपमेंट टर्मिनल, ग्रीनफील्ड अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, बिजली संयंत्र, औद्योगिक पार्क और एक नई टाउनशिप का निर्माण शामिल है। इसका उद्देश्य भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और सामरिक केंद्र बनाना है।
हालांकि, इस परियोजना को लेकर कई पर्यावरणीय और मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ उठाई गई हैं। विशेष रूप से, शॉम्पेन जनजाति, जो इस द्वीप पर निवास करती है, के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। परियोजना के कारण उनके पारंपरिक आवास स्थानों का विनाश हो सकता है, जिससे उनकी जीवनशैली और संस्कृति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने इस परियोजना को “गलत सोच वाली नीति” करार देते हुए इसके पर्यावरणीय प्रभावों पर चिंता व्यक्त की है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने इसे भारत की सामरिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए आवश्यक बताया है।
इस परियोजना की सफलता या विफलता न केवल भारत की विकास नीति को प्रभावित करेगी, बल्कि यह देश की पर्यावरणीय और सामाजिक जिम्मेदारियों पर भी सवाल उठाएगी।