राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143 का उपयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट से राज्यपालों और राष्ट्रपति की शक्तियों पर 14 महत्वपूर्ण कानूनी सवालों का स्पष्टीकरण मांगा है। इन सवालों में विशेष रूप से यह पूछा गया है कि क्या शीर्ष अदालत राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों पर सहमति देने के लिए समयसीमा निर्धारित कर सकती है, और अनुच्छेद 142 के तहत न्यायिक शक्तियों की सीमा क्या है।
यह कदम हाल ही में तमिलनाडु राज्यपाल द्वारा 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उठाया गया है, जिसमें एक महीने के भीतर सहमति देने की समयसीमा निर्धारित की गई थी। राष्ट्रपति ने इस आदेश को लेकर न्यायिक हस्तक्षेप की सीमा पर सवाल उठाए हैं।
उन्होंने यह भी पूछा है कि क्या न्यायपालिका राज्यपालों की शक्तियों में हस्तक्षेप कर सकती है, और क्या अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों पर न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।
राष्ट्रपति ने इन सवालों के उत्तर के लिए संविधान पीठ से मार्गदर्शन की मांग की है। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों को विधेयकों पर सहमति देने के लिए एक महीने की समयसीमा निर्धारित की थी, और इस प्रक्रिया में किसी भी विलंब को न्यायिक समीक्षा के दायरे में रखा था। राष्ट्रपति के इन सवालों ने न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शक्तियों के संतुलन पर नए सवाल खड़े किए हैं।