सुप्रीम कोर्ट की पीठ—न्यायमूर्ति बी.वी. नागरात्ना और न्यायमूर्ति सतिश चंद्र शर्मा—ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि वह निजी विवाद में कैसे मध्यस्थ बन सकती है? कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि राज्य निजी मामलों में हस्तक्षेप करता है, तो यह rule of law का मर्म ही कमजोर कर सकता है। कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया: “भगवान कृष्ण ही पहले मध्यस्थ थे” और मानव मध्यस्थता से बेहतर हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई को ₹500 करोड़ के बांके बिहारी कॉरिडोर की अनुमति दी थी जिसमें मंदिर के پول का उपयोग 5 एकड़ भूमि अधिग्रहण के लिए किया जाना शामिल था – पर शर्त थी कि भूमि मंदिर के नाम पर दर्ज होगी।
शुरुआती टिप्पणी:
वृन्दावन के उत्तेजक पृष्टभूमि में वरिष्ठ मंदिर सेबैत देवेंद्र नाथ गोस्वामी ने यह मुकदमा सुप्रीम कोर्ट में लाया था, जिसमें उन्होंने कहा कि बिना उनकी अनुमति के मंदिर निधि का इस्तेमाल करना अनुचित है और इससे मंदिर की पारंपरिक स्वतंत्रता प्रभावित हो रही है। कोर्ट ने उनकी समीक्षा याचिका पर सुनवाई को स्वीकार किया है। अगली सुनवाई 29 जुलाई, 2025 को निर्धारित की गई है।
UP सरकार ने इसके जवाब में एक न्यास (ट्रस्ट) गठित किया है, जो कॉरिडोर परियोजना संचालित करेगा लेकिन सेबैत समुदाय से परामर्श के अनुबंधित विवाद लगातार जारी हैं।